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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ४७१ मूलम्-से संबदंसी अभिभूयनाणी, णिरामगंधे धिइमंठियप्पा। अणुत्तरेसठवजगंलि विनं, गंा अतीते अभये अगाऊ॥५॥ छायास सर्वदर्शी अभिभूयज्ञानी, निरामगन्धो धृतिमान् स्थितात्मा । अनुत्तरः सर्वजगति विद्वान् , ग्रन्थादतीतोऽभयोऽनायुः ॥५॥ अन्वयार्थ (से) स महावीरः (सव्वदंसी) सर्वदर्शी-सामान्यतः सर्वपदार्थविषयकदर्शनशीलः (अभिथूयनाणी) अभिभूयज्ञानी-केवलज्ञानी (णिरामगंधे) ' शब्दार्थ-से-सः' वह महावीरस्वामी 'सचदंसी-सर्वदर्शी' समस्त पदार्थों को देखनेवाले 'अभिभूयनाणी-अभिभूयज्ञानी' केवलज्ञानी 'णिरामगंधे-निरामगंधः' मूलगुण और उत्तरगुण विशुद्ध चारित्र का पालन करने वाले 'धिहम-धृतिमान्' धृति युक्त और 'ठियप्पा-स्थितात्मा' आत्मस्वरूप में स्थित थे 'सव्वजगंखि-सर्वजगत्लु' संपूर्ण जगत् में वह 'अणुत्तरे विज्ज-अनुत्तरो विद्वान् । सबसे उत्तम विहान थे 'गंथाअतीते-ग्रन्थातीतः' बाह्य और आभ्यंतर दोनों प्रकार की अन्थियों से रहित 'अभए-अभयः' निर्भय और 'अणाउ-अनायुः' चारों प्रकार की आयु से रहित थे ॥५॥ 'से सव्वदंसी' इत्यादि। अन्वयार्थ-भगवान् महावीर सर्वदर्शी अर्थात् सामान्य रूप से समस्त पदार्थों के दर्शन से युक्त थे। केवलज्ञानी थे। मूलगुणों और _ 'से सव्वदंसी' Avalथ-से-स' ते महावीर स्वामी 'सव्वदंसी-सर्वदर्शी' मा २४ पहा ना 'अभिभूयनाणी-अभिभूयज्ञानी' ज्ञानी णिरामगधेनिरामगधः' भुसगुण भने उत्तगुथी विशुद्ध यात्रिनु पालन ४२वावा 'धिइम-धृतिमान्' धृति युति भने 'ठियप्पा-स्थितात्मा' मात्म २१३५मा स्थित हता, 'सव्वजगसि-सर्वजगत्सु' स पूर्ण तम त 'अणुत्तरे विज्ज-अनुत्तरों विद्वान्' माथी उत्तम विद्वान सता, 'गंथा अतीते-ग्रन्थातीतः माह मने मायत२ मा १२नी अथियाथी २खित 'अभए-अभयः' निया भने 'अणाउ-अनायुः' यारे प्रा२ना मायुथी २हित तi. ॥५॥ સૂત્રાર્થ–મહાવીર પ્રભુ સર્વદશી હતા એટલે કે તેઓ સામાન્યરૂપે સમસ્ત પદાર્થોનાં દર્શનથી યુક્ત હતા. તેઓ કેવળજ્ઞાની હતા, તેઓ મૂળ
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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