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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रृं. अ. ६ उ.१ भगवतो महावीरस्य गुणवर्णनम् the -अनन्तदर्शनवान् आसीत् । (एतादृशो यशस्वी भगवान् सर्वलोकानां लोचनपथे वर्तमानस्तस्य धर्म धृति च त्वं जानीहि-तधैर्य विचारय इति ॥३॥ साम्प्रतं सुधर्मस्वामी तद्गुणान् वर्णयितुमाह-उड्डू" इत्यादि। मूलम्-'उड़े अहेयं तिरिय दिसासु, तसा य जै थावरा जे य पाणां ।। से णिचं णिच्चेहिं समिक्खपन्ने, दीवे धम्म लमियं उदाह' ॥४॥ छाया-अर्चमधस्तियग् दिशाम, जसाश्च ये स्थवरा ये च प्राणाः। स नित्यानित्याभ्यां समीक्ष्य प्रज्ञो, दीपइव धर्म समितमुदाह ॥४॥ ज्ञानवान् और अनन्तदर्शनवान् थे। ऐसे यशस्वी भगवान् सबके लोचनपथ में वर्तमान थे। उनके धर्म को तुम जानो और धैर्य पर विचार करो ॥३॥ सब सुधर्मा भगवान् के गुणों का वर्णन के लिए कहते हैं'उडूढं' इत्यादि। शब्दार्थ-'उडूं-ऊर्च' अपर 'अहेयं-अधः' नीचे 'तिरियं-तिर्यग् ! तिरछे 'दिसासु-दिक्षु' दिशाओं में 'तसा य जे-त्रसाश्च ये, जो त्रस और 'थावरा जे य पाणा-स्थावराः ये च प्राणाः' स्थावर प्राणी रहते हैं उन्हें जिचाणिच्चेहि-नित्यानित्याचा' नित्य और अनित्य दोनों प्रकार का 'समिक्ख-समीक्ष्य' जानकर 'से पन्ने-स प्रज्ञः। उन केवलज्ञानी भगवानने 'दीवेव-दीप श्व' दीप के समान 'समियं-समितम्' समता અનન્ત દર્શનથી યુક્ત હતા. એવા યશસ્વી ભગવાન સૌના ચહ્યુપથમાં વિદ્યમાન હતા. તેમના ધર્મને તમે જાણે અને તેમના ધૈર્યને વિચાર કરો. ૩ हवे सुधा स्वामी महावीर प्रभुना गुणानुवर्णन ४२ छ–'उड्ढे ४त्यादि शहाय-- 'उड्ढ-ऊध्र्व' ७५२ 'अहेयं-अध' नाय 'तिरिय-तिर्यगू' तिरछी 'दिसासु-दिक्षु शियोमा 'तसा य जे-साच ये' २ स मन थावरा जे य-पाणा-स्थावराः ये च प्राणाः' स्था१२ पापी २९ छे. भने 'णिच्चाणिच्चेहि-नित्यानित्याभ्यां नित्य भने मनित्य ' अहाना 'समिक्ख-समीक्ष्य' gीन से पन्ने-स. प्रज्ञः' ते पज्ञानी नवीन 'दीव
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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