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________________ समयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ५ उ. २ नारकीयवेदनानिरूपणम् स्वेच्छया गच्छन्ति किन्तु तत्रत्यः सर्वोऽपि व्यवसायव्यवहारः पराधीन एव; यातनाभूमित्वान्नरकस्येति भावः ॥५॥ मूळम्-ते संपैगाढंसि पर्वजमाणा सिलाहि हम्मंति निपातिणीहिं। संतावणी नाम चिरद्वितीया संतप्पती जत्थ असाहुकम्मा॥६॥ छाया-ते संपगाढं प्रपद्यमानाः शिलाभिर्हन्यन्ते निपातिनीभिः । - संतापिनी नाम चिरस्थितिका संताप्यन्ते यत्र असाधुकर्माणः ॥६॥ __ अन्वयार्थः-(ते) ते नारकजीवाः (संयगादसि) संप्रगाढम्-असह्यवेदनायुक्ते नरके (पवन्जमाणा) प्रपद्यमानाः गन्तारः (निपातिणीहिं) निपातनीमि:-अधः पातयितुं योग्यामिः (सिलाहिं) शिलाभिः पापाणवण्डैः (हम्मंति) हन्यन्ते वाड्यन्ते (संतावणी नाम) संतापनी नाम कुमी (चिरद्वितीया) चिरस्थितिका बहुकालअपनी इच्छा से कहीं विश्राम लेते हैं और न कहीं चलते हैं । वहां का सम्पूर्ण व्यवसाय व्यवहार पराधीन ही है। क्योंकि नरक तो केवल यातनाभूमि ही है ॥५॥ 'ते संपगालि' इत्यादि । शब्दार्थ-ते-ते' वे नारकजीव 'संगासि-संप्रगाढे अधिक वेदनायुक्त असत्य नरक में 'पज्जमाणा-प्रपद्यमानाः गए हुए निपा. तिणीहिं-निपातिनीभिः' सन्मुख गिरने वाली 'सिलाहि-शिलाभि:' पाषाण के खण्डों से 'हम्मंति-हन्यन्ते' मारे जाते हैं 'संतावणी नामसंतापिनी नाम संतापनी अर्थात् कुम्त्री दाम का नरक 'चिरहितीयाचिरस्थितिका' पल्योपम सागरोपम कालपर्यन्त स्थितिवाला है દશા ભેગવવી પડે છે. પરમાધાર્મિકે તેમને જે જે યાતનાઓ આપે, તે તેમને સહન કરવી જ પડે છે. આ રીતે આ નરકસ્થાને યાતનાભૂમિ જેવાં જ છે. આપા 'ते संपगासि' त्याह साथ-'-वे' त ना२४ ७१ 'संपगाढ सि-संप्रगाढे' मधिर वना युक्त असा न२४मा 'पवज्जमाणा-प्रपद्यमाना.' गये 'निपातिणीहि-निपातिनीभिः' सामे मावान ५४वापाणी 'सिलाहि-शिलाभिः' ५.५२ना माथी 'हम्मंतिइन्यन्ते' भाकामा मावे छे. 'संतावणीनाम-संतापनीनाम-अर्थात् हुनी नामनु न२४ 'चिरद्वितीया-चिरस्थितिकाः' पक्ष्या५म. सागरा५म तयन्त स्थिति , पाणु छ, 'जत्थ-यन्त्र' रेभा 'असाहुकम्मा-अमाधुकर्माण', पा५४. ४२वापा
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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