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________________ ફેકટ सूत्रकृताङ्गसूत्रे . वैतरिणीम् 'उसुचोइया' इषुनोदिता-बाणेन प्रेरिताः 'सत्तिसु हम्ममाणा' शक्तिभिश्च हन्यमानाः सन्तः, तामेव वैतरणी 'तरंति' तरन्ति, पतन्तीति भावः ॥८॥ मूलम्-कीलेहिं विज्झंति असाहुकम्मा नावं उविते लईविप्पहणा। . अन्नेतु सूलाहिं तिसूलियाहिं दीहाहिं विvण अहे करंति।९। छाया-कीलेषु विध्यन्ति असाधुकर्माणः नावमुपेताः स्मृतिविहीणाः। अन्ये तु शूलैत्रिशूलैीधैं विद्ध्वाऽधः कुर्वन्ति ॥९॥ अन्वयार्थ:-(नावं उर्विते) नावमुपयाता:-नावारूढाः (असाहुकम्मा) असाधु... कर्माणः-परमाधार्मिकाः तान् नारकान् (कीलेहि विमंति) कीलेषु विध्यन्ति,उसे शान्त करने के लिए उल दुर्गम और भयंकर वैतरणी नदी में बाणों. से.प्रेरित होकर तथा शक्ति नामक शो से आहत होकर गिरते हैं ॥८॥ शब्दार्थ-'नावं उविते-भावमुपेताः नाव - पर बैठकर आते हुए 'असाहुकम्मा-असाधु कर्माणः परमाधार्षिक 'कीलेहि विज्झति-कीलेषु विध्यन्ति' कीलों से कण्ठ में वींधते हैं। विधमान वे नारक 'सइचिप्पहणा-स्मृतिविग्रहोणाः' - स्मृतिरहित होकर . किंकर्तव्यमूढ हो जाते हैं तथा-'अन्ने तु-अन्ये तु' दूसरे नरक्षपाल 'दीहाहि-दीर्धे:' दीर्घ 'मूलाहि-शूलै' शूलों से एवं तिलियाहिं-त्रिशूलैश्च' त्रिशूलों के द्वारा 'चिंधूण अहे करंति-विद्ध्वाधा अर्चन्ति' नारक जीवों को वेधकर नीचे फेंक देते हैं ॥१॥ अन्वयार्थ-जीका पर आरूढ होकर असाधुकर्मी परमाधार्मिक उन नारकों के कंठ को कीलेले वेधते हैं। विधे गये वे नारक स्मृतिજ દુષ્કર ગણાય છે. પરમાધાર્મિક દેના તીરોથી પ્રેરાએલાં અને ભાલાથી ઘવાએલાંને વૈતરણું નદી પાર કરવી પડે છે. ૫૮ शहा---'नावं उनिते-नावमुपेताः' नाप मर्थात् डी ५२ मेसीन माता सेवा नावाने 'असाहुकम्मा-असाधुकर्माण.' ५२भाधामि 'कीलेहि विज्झति-कोलेषु विध्यन्ति' मामा सवीधे ठेवींवायेहा शेवाते ना२४ 'सइविप्पहूणा-स्मृतिविहीणाः' स्मृति विनाना ७२ तव्यभूद थ नय छ. तथा 'अन्ने तु-अन्ये तु' मीन न२४५ia 'दीहाहि-दोधै: मेवा 'सूलाहि-शूले:' शूतथी तमा 'तिसूलियाहि-त्रिशूलैश्च' त्रिशूसी द्वारा विधूण अहे करें'ति-विद्ध्वाऽध. कुर्वन्ति' ना२ विधीन नाय ३३ है छेद। સૂત્રાર્થ-કૌકાઓમાં બેસીને તે અસાધુકમાં પરમધાર્મિક , દે તે નારકેને પીછે પકડે છે. તેઓ નારકના કંઠમાં ખીલાઓ ભેંકી દે છે. '
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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