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• घशताङ्गसने मूलम्-जइ ते सुशा वेयरणीभिदुग्गा,
पिसिओ जहा बुर इव तिक्खसोया। तति ते वेयरणिभिदुग्गा उसुचौड़या स्तत्तिनुहम्ममाणाद! छाया--यदि त्या श्रुता चैतरणमामिदुर्गा निशितो यथा शुर इव तीक्ष्णस्रोताः।
तरन्ति ते वैतरणीभिडीमिपुरोदिताः शकित हन्पमानाः ॥८॥ अन्वयार्थ:--(पिपिओ बुर इस तिव वनोया) निमितः क्षुर इव तीक्ष्णताः (जइ ते) यदि ते (अभिदुग्गा) अभिदुर्गा- दुःण्डोत्पादिका (वेयरणी) कथन में सूर्य को वाण की उपमादी गई है तथापि दोनों में महान अन्तर है, लसी प्रकार यहां के ताप और नरक के ताप में भी भारी अन्तर है॥७॥
शब्दार्थ-णिसिओ खुर इच निक्खसोया-निशितः क्षुर व तीक्ष्णस्रोता' तीक्ष्ण उस्तरे की धार के समान तेज धार वाली 'जइ ते'-यदि स्वया' जो तुमने 'अभिदुग्गा-अभिदुर्गा अति दुर्गम 'वेगरणी-वैतरणी' वैतरणी नदी को 'सुया-श्रुता' सुना होगा 'ते-ते' के नारक जीव 'अभिदुग्गां वेयरणि-अभिदुर्गा वैतरणीम्' अतिदुर्गमवैतरणी की 'उसुचोइया-इषुनोदिताः' घाण से प्रेरित किये हुए 'सत्तिसु हम्ममाणा-शक्तिसु हन्यमानाः तथा भाला से भेदकर चलाये हुए 'तरंतितरन्ति तैरते हैं ॥८॥
अन्वयार्थ-छुरा के समान तीक्ष्ण धार वाली वैतरणी नदी तुमने सुनी होगी। यह अत्यन्त दुर्गम है और क्षार, उष्ण एवं रुधिर जैसे માટે તફાવત છે, એ જ પ્રમાણે આ પૃથ્વી પરના તાપ (ગરમી) અને નરકના તાપ વચ્ચે ઘણું જ મેટે તફાવત છે.
शहा- "णिसिओ खुर इव निखसोया-निशितः क्षुर इव तीक्ष्णास्रोताः' ती भरताना धार स२पी ते धारवाणी 'जइ वे-यदि त्वया' ले तमे 'अभिदुग्गा-अभिदुर्गा' सत्यत हुभ वेयरणी-वैतरणी' वैतरणी नामना नहीन 'सुया-श्रुता' सieणी शे- 'ते-ते' ते ना२8 । 'अभिदुगगां वेयरणिअभिदुर्गा' वैतरणीम्' मत्यात हुभ दी वैतरणी नही . 'उसुचाइया, इषु नोदिता.' माथी- प्रेरणा ४२८ वा 'सत्तिम, हम्ममाणा-शकिसु हन्यमानाः' माथी नहीन यावा मावेसा ना२४ । 'तरंति-तरन्ति' तरे छ. ॥८॥
સૂત્રાર્થ—અસ્ત્રાના જેવી તીક્ષણ ધારવાળી વૈતરણી નદીનું નામ તો તમે સાંભળ્યું હશે. તે નદી ઘણી જ દુર્ગમ છે. તે ક્ષાર, ઉષ્ણુ અને રુધિર