SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ५ उ.१ नारकीयवेदनानिरूपणम् . ३३५ मूलम्-पागनिम पाणे बेहुणतिवाति अनिवते घातसुवेति वाले। णिहो णिलं पच्छंई अंतकाले, अहो तिरंक उबेइ देगी। छाया-पागलली माणानां बहूनामतिपाती अनि तो घातमुपैति वालः । न्यग् निशां गच्छत्यन्तकाले अधः शिरः कृत्वोपैति दुर्गम् ।।५।। अन्वयार्थ:-(भागनि) मागल्भी पापकर्मणि धृष्टः (बहूगं पाणे तियाति) बहूनां प्राणानामतिपाती अनेकजीवपिराधकः (अनिवते) अनिवृतः सदैव क्रोधा. ग्निना दह्यमानः एतादृशः (बाले) वालोऽज्ञानी (अंतकाले) अन्तकाले मरणसमये उपदेश घचनों की किंचित् भी शिक्षा नहीं लेते उन्हे नहीं सुनते, वे नरक में पड़ते हैं ॥४॥ शब्दार्थ-'पागभि-प्रागल्भी' जो पुरुष पाप करने में धृष्ट है 'घहूणं पाणेतिवाति-बहूनां प्राणानामतिपाती' बहुत प्राणियों का घात करता है 'अनिव्वते-अनिर्वृतः' और जो सदैव क्रोधाग्नि से जलता रहता है 'घाले-बाल' ऐसा अज्ञानी 'अंतकाले-अन्तकाले' मरणकाल में 'णिहो-न्यक' नीचे 'णिसं-निशाम्' अन्धकार में 'गच्छह-गच्छति' जाता है 'अहो सिरं कहुँ-अधः शिरः कृत्वा' वह नीचे मस्तक करके 'दुग्गं-दुर्गम्' कठिन यातनास्थान को 'उवेह-उपैति' प्राप्त करता है।। अन्वयार्थ--जो जीव पापकर्म में धृष्ट है, बहुत प्राणियों का घातक है, सदैव क्रोधाग्नि से जलता रहता है, ऐसा अज्ञानी जीव मृत्यु के કરતા નથી, તેને સાંભળવાનું પણ જેમને ગમતું નથી, એવાં છે નરકમાં. ગમન કરે છે. કે ૪ शा-'पागभी-प्रागल्भी' २ पु३५। ५५५ ४२वामा धृष्टतापामा डाय छ, 'बहूणं पाणेतिवाति-बहूनां प्राणानासतिपाती' घट प्राणियोनी धात ४२ छे. 'अनिव्वते-अनिवृत.' भने २ ५३पी ममिया हमेशा मते २९ छ. 'घाले-बालः' मेरो मज्ञानी १ 'अंतकाळे-अन्तकाले' भ२४ समये 'णिहो-न्यक्' नाय "णिसं-निशाम्' धारामा 'गच्छइ-गच्छति' लय छे. 'अहो सिर कटु-अव शिरः कृत्वा' ते नीयु भए। शव 'दुग्गं-दुर्गम्' ४५ सा स्थानने 'उवेइ-उपैति' मा ४३ छे. ॥५॥ સૂત્રાર્થ–-જે પાપકર્મોમાં ધૃષ્ટ છે-પાપકર્મો કરતા જેઓ લજવાતા નથી, જેઓ અનેક જીવને ઘાત કર્યા કરે છે, જેમનું હૃદય કોધાગ્નિથી સદા બન્યા કરતું હોય છે, એવા અજ્ઞાની મનુષ્યો આ મનુષ્ય ભવનું આયુષ્ય
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy