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________________ १६२ । - सूत्रकृताङ्गसूत्र मूलम्-पाणाइवाए वढता मुलावोए अलंजता। अदिन्नादाणे वदंता सेहुणे य परिगहे ॥८॥ छाया-प्राणातिपाते वर्तमाना मृषावादे असंयताः । ___ अदत्तादाने वर्तमाना मैथुने च परिग्रहे ॥८॥ अन्वयार्थः-(पाणाइवाए) प्राणातिपाते जीवहिंसायां पट् जीवनिकायमर्दनरूपायां (मुसावाए) मृपावादे (अदिन्नादाणे) अदत्तादाने (मेहुणे) मैथुने (परिग्गहे) परिग्रहे (वता) वर्तमानाः यूयम् (असंजना) असंयत्ताः सन्तीति । ८॥ टीका-मुखादेव सुखं जायते इति मिथ्यासिद्धान्तं दुषयितुं सूत्रकारः अन्यतीथिकान् माह-पाणाइवाए' प्राणातिपातेवजीवनिकायहिंसने, 'सुसा. वाए' मृषावादे, मिथ्यावचनप्रयोगे । 'अदिन्नादाणे' अदत्तादाने 'मेहुणे' मैथुने . शब्दार्थ-पाणाइवाए-प्राणालिपाते' षड्जीवनिकायके मर्दनरूप जीवहिंसा में 'सुहावाए-मृषावादे' मियाभाषण में 'अदिन्नादाणे-अदत्तादाने अदत्तादान में 'मेहुणे-मैथुने' मैथुन में 'परिगहेपरिग्रहे, परिग्रह में 'वता-पतमाना.' प्रवृत्त रहनेवाले आप लोक 'असंजता-असंयताः' असंयमी है ॥८॥ ___ अन्वयार्थ--प्राणातिपात, मृषावाद, अदन्तादान, मैथुन और परिग्रह में प्रवृत्ति करते हुए आप लोक असंयमी हैं ॥८॥ . टीकार्थ-सुख से ही मुख की उत्पत्ति होती है, इस मिथ्या सिद्धान्त को दषित करने के लिए मूत्रकार अन्यतीर्थिकों के प्रति कहते हैं-प्राणातिपान अर्थात् पटू जीवनिकाय की हिंसा में मृषावाद मिथ्या'शार्थ-पाणाइवाए-प्राणातिपाते' १३ नियनी भहन३५ १ हिंसामा 'मुसावाए-मृपावादे' मिथ्या लापमा 'अदिनादाणे-अदत्तादाने महत्ता होनi 'मेहणे-मैथुने' भैथुनमा 'परिग्गहे-परिग्रहे' परियडमा 'वटुंता-वर्तमानाः', प्रवृत्त २२वाणा माला। 'असंजता-असंयताः' भसयभी छ। ॥८॥ સૂત્રાર્થ–પ્રાણાતિપાત, મૃષાવાદ, અદત્તાદાન, મિથુન અને પરિગ્રહમાં પ્રવૃત્ત એવાં આપ લેકે અસંયમી છે. ૮ : , ટીકાર્ચ–“સુખ દ્વારા જ સુખ ઉત્પન્ન થાય છે, આ પ્રકારના મિથ્યા સિદ્ધાંતમાં રહેવા દે પ્રકટ કરવાને માટે સૂત્રકાર પરતીWિકેને આ પ્રમાણે કહે છે–તમે પ્રાણાતિપાત-કાયના જીવોની હિંસામાં પ્રવૃત્ત રહે છે,
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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