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________________ ६८२, समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. २ उ. ३ साधूनां पीरपहोपसर्गसहनोपदेशः, पुनः सूत्रकार अमुमेवार्थमाह -- 'अभविसु' इत्यादि । मूलम् । अभविंसु पुरा वि भिक्खवो आएसा वि भवंति सुव्वया। एयाई गुणाई आहु ते कासवरस अणुधम्मचारिणो ॥२०॥ छाया अभवन् पुरापि भिक्षवः आगामिनश्च भविष्यन्ति मुव्रताः। एतान् गुणानाहुस्ते काश्यपस्य धर्माऽनुचारिणः ॥२०॥ अन्वयार्थः (भिक्खयो) हे भिक्षवः (पुरा वि) पूर्वकाले पि (अभविमु) अभूवन ये सर्वज्ञास्तीर्थकराः, तथा (आएसा वि) आगामिनश्च (भवति) भविप्यन्ति (ते) ते सर्वे भी यही उपदेश है । अर्थात् जो आदिनाथ भगवान ने प्रतिपादन किया है, वही शेप तीर्थंकरों ने भी कहा है ।।१९।। सूत्रकार पुनः यही कहते हैं "अभविमु” इत्यादि । शब्दार्थ-'भिक्खयो-भिक्षवः हे साधुओ ! 'पुरा वि--पुरापि पूर्व कालमें भी 'अभविमु-अभूवन्' जो सर्वज्ञ हो चुके हैं और 'आएसा वि--आगामिनश्च भविष्यकाल में 'भवंति--भविष्यन्ति' जो होने वाले हैं 'ते--ते' वे 'मुबया--मुव्रताः' मुत्रत पुरुषो ने 'एयाई-एतान्' इन्हीं 'गुणाई--गुणान्’ गुणों को 'आहु--आहुः मोक्षका साधक कहा है, तथा 'कासवस्स--काश्यपस्य' भगवान् ऋपभदेव अथवा भगवान् महावीर स्वामी के 'अणुधम्मचारिणो--अनुधर्मचारिणः' अनुयायी योंने भी यही कहा है ॥२०॥ છે અને અન્ય તીર્થ કરેએ પણ એ જ ઉપદેશ આપે છે એટલે કે આદિનાથ ભગવાને જે પ્રતિપાદન કર્યું છે એજ બાકીના તીર્થકરેએ પણ કહ્યું છે . ગાથા ૧૯ सूत्रा२३ गोला पात छ- 'अभिवि सु' त्या watथ-'भिक्खयो-भिक्षव साधुओ। 'पुरा वि-पुरापि' पूर्वमा ५५ अभविसुः, अभूवन्' २ स थ यु छ भने 'आपसा वि-आगामिनश्च' भविष्यमा 'भव ति-- भविष्यन्ति' २ थवावा छे 'ते ते' ते 'सुब्धया-सुनना' सुत्रत पुषोये 'एयाइ... पतान्' मा ०८ 'गुणाइ --गुणान्' गुणने 'आहु--आहु ' भावना माघ ४हेस छे तथा 'कासवस्ल-काश्यपस्य' लगवान् ५१० अथवा मगवान् महावीर स्वामीना 'अणु-: धम्मचारिणो-अनुधर्मचारिण' अनुयायीमा पy 20 प्रमाणे २४ डेस छ. ॥ २० ॥
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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