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________________ TFEEL 7. अन्वयार्थ:- 1 .''सहिएडि' सहितैः-ज्ञानादिभिः सपन्नः पुम्पः एवं एवम् अनेन प्रकारण 'पासए' पश्यत्- कुशाग्रबुद्धया विचारयेत् 'अहमेव' अहमेव (ना) ३:-गीताणादि दःखविशेपैः ‘णवि' नापि भवेत्यर्थः, 'लुप्पए' लुप्ये पीटये, फिन्त (लोयमि) लोके संसारे 'पाणिणो' पाणिनो अन्येपि जीवाः 'लुप्पंति लुप्यन्त पीडन्त, अनः 'से' सः महासत्त्वः पुढे स्पृष्टः परिपट्टः स्पृष्टोपि तान (अणिह) अनिहः न. निहो अनिहः क्रोधादिभिरपीडितः सन (अहियासए) अधिसदेत मनःपीडान विदध्यादिति ॥१३॥ आदि दुःख विशेपोसे 'णवि-नापि' नहीं 'लुप्पा-लुप्ये' पीडित किया जाना हूं 'लोयमि-लोके' इस संमार में 'पाणीणो -प्राणिनः दसरे प्राणी भी. 'लुप्पंतिलुप्यन्ते' पीडित होते है अतः 'से--सः' वह मुनि 'पुटे-पृष्टः' परीपहों से स्पर्शित होकरके भी 'अणिहे--अनिहः' क्रोधादि रहित होकर 'अहियासह-अधि'सहेत' उनको सहन करे ॥१३॥ अन्वयार्य"" सम्यग्ज्ञान आदि से सम्पन्न पुरुप इस प्रकार विचार करें सर्दी गर्मी के कष्ट से मैं ही पीडिन नहीं होता किन्तु संसार में अन्यप्राणी भी पीडित होते हैं। 'इस प्रकार विचार कर वह महासत्त्व साधक परीपही से स्पृष्ट होकर भी, क्रोधादिसे रहित होता हुआ उसे सहन करें- मानसिक पीडाका अनुभव न करें ॥१६॥ - - तो विगैरे) वि२५ था 'णपि-नापि' नथी. लुप्प-लुप्ये पारित २वामा आवतो. "लोय मि-लोके' मा ससारमा पाणिणो-प्राणिन' मी मनायो ५६ लंपनि-लुप्यते पीडित ,वामा भाव छ तेथी 'से-सः' ते भुनि-पुस्प्रष्ट.' परिपहाथी पर्शित यने ५ अणिहे'-अनिह' अध वगेरे सहित ने महियासहे-अविसहेत' તેમને સહન કરે છે ૧૩ છે ___ - सूत्राय - }; સમ્યગ્ર જ્ઞાન આદિથી સંપન્ન પુરુષે આ પ્રકારનો વિચાર કરે જોઈએ હું એકલો જ ઠડી, ગરમી આદિ કષ્ટો વડે પીડિત છુ, એવું નથી, પરંતુ સંસારના અન્ય પ્રાણીઓ પણ તે, કહો વડે પીડિત છે આ પ્રકારને વિચાર કરીને તે મહાસત્ત્વ સાધકચરી હેથી સ્કૃષ્ટ થવા છતા પણ ક્રોધાદિ કર્યા વિના મધ્યસ્થ ભાવે તેને સહન કરે આ પ્રકારના પરીષહે मापी ५पाथी नेणे मानसिपी31 21नुभवी नये नही. ॥ १3-11 ., . .
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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