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________________ सूत्रकृतास्ते -छाया ' येचापि वहश्रताः स्यु र्धार्मिकब्राह्मणभिक्षुकाः स्युः।' अभिच्छादककृतैमूच्छिता स्तीव्र तेकर्मभिः कृत्यते ॥७॥ - -अन्वयार्थ. (जे) ये (यावि) चापि (वहुस्सुया) बहुश्रुताः-अनेकशास्त्रार्थपारगताः तथा (धाम्मिणमाहणभिक्खुए) धार्मिक राह्मणमिक्षुका:-धार्मिकाः-धर्माचरणशीलाः ब्राह्मणाः-प्रसिद्धाः, भिक्षुकाः--भिक्षाटनशीलाः (सिया) स्युः (अभिमक.हिं) अभिच्छादककृतैः मायासंपादितानुष्ठानैः (मुच्छिए) मूर्छिताः--गृद्धाः(ते)ते(तिव्वं) तीव्रमत्यन्तम् (कम्मेहिं) कर्मभिः (किच्चति) कृत्यन्ते--छियन्ते पीडयन्ते इत्यर्थः ॥७॥ ___और भी कहते हैं 'जे यावि वहुस्सुए' इत्यदि।। शब्दार्थ-' जे--ये' जो ' यावि-चापि' कोई भी 'बहुस्सुया'-बहुश्रुताः, अनेक शास्त्रों के पारंगत तथा 'धम्मिणमाहण भिक्खुए' धार्मिकब्रह्मणभिक्षुकाः धार्मिकब्राह्मण और भिक्षुक 'सिया-स्युः' हो, 'अभिणूमकडेहि-अभिच्छादक कृतैः' मायाकृत अनुष्ठानोंमें 'मुच्छिए । मूच्छिताः' आसक्त हैं तो 'ते--ते.' वे 'तिव्वं तिव्रम्' अत्यन्त ‘कम्मेहिं--कर्मभिः' कर्मसे 'किच्चइ--कृत्यन्ते पीडित किये जाते हैं ॥७॥ . अन्वयार्थ-- ___ जो भी अनेक शास्त्रों में पारंगत हैं, तथा धर्मका आचरण करनेवाले हैं, ब्राह्मण हैं या जो मायाचारसे किये हुए अनुष्ठानों के द्वारा गृद्ध हैं, वे अपने कर्मोंसे अत्यन्त पीडित होते हैं ॥७॥ quी सूत्र२ ४ छ - "जे यावि वहुस्सुए" त्याle शहाथ-'जे-येरे 'यावि-चापि' ५ 'बहुस्सुता' मने शासाना पारत, तथा 'धम्मिणमाहणभिक्खुए-धार्मिकब्राह्मणभिक्षुकाः' धाभि प्राझार भने लिमारी 'सिया-स्यु' उय, 'अभिणूमकडेहि --अभिच्छादक कृत' भायात मनुष्ठानाभा 'मुच्छिएभूच्छिताः' मसत य त 'ते-ते' तेमा 'तिव्य -तीव्र अत्यन्त कम्मेहि-कर्मभिः' भथा. 'किच्चई-कृत्यन्ते' Goqामा मवे छे. ॥७॥ सूर्थ - જેઓ અનેક શસ્ત્રોમાં પારગત છે, તથા ધર્માચરણ કરનારા છે, બ્રાહ્મણ છે અથવા ભિક્ષુકે છે, તેઓ જે માયાચારથી કરાતા અનુષ્ઠાનેમા ગૃદ્ધ (આસક્ત) હોય છે, તે તેઓ પિતાનાં કર્મો દ્વારા અત્યત પીડિત થાય છે કે ૭ છે
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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