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________________ समयार्थ बोधिनी टोका प्र श्रु अ १ उ. ४ साधुजीवनयात्रानिर्वाहनिरूपणम् ४११ :: अन्वयार्थ- . . . । (सपरिग्गहा). ,सपरिग्रहाः परिग्रहेण सहिताः, परिग्रहवन्तइत्यर्थः । (यो) च-पुनः (सारंभा) सारम्भाः प्राणातिपाताधारंभसहिता अपि जीवाः मोक्षं प्राप्नु वन्ति इति । (इहं) इह-अस्मिन् लोके विपये । (एगेसिं) एकेपों केपांचि वादिनाम् आयातम् कथितं कथनं वर्तते किन्तु तन सम्यक् अतः (भिक्खू) भिक्षुः जिनाज्ञाराधकः । (अपरिग्गहा) अपरिग्रहान् परिग्रहरहितान् (अणारंभा) अनारम्भान् आरंभरहितान् पुरुपान् । (ताणं) त्राणं शरणम् (परिव्वए) परिव्रजेत्-प्राप्नुयात् । । टीका-- , 'सपरिग्गहा' सपरिग्रहाः परिग्रहेण धनधान्यपश्वादिना सह वर्तन्ते इति सपरिग्रहाः । कदाचित् परिग्रहाऽभावेऽपि शरीरोपकरणे मूर्छावन्तः सपरिग्रहाः। अपरिग्रहान्' परिग्रह, से रहित और। 'अणारंभा-अनारम्भान्' : आरम्भवर्जित पुरुष के 'ताणं-त्राणम्' शरणमें परिव्वए-परिव्रजेत्' जावे ॥३॥' !' । अन्वयार्थ ।। . . परिग्रह से युक्त और ,प्राणातिपात आदि आरंभ से युक्त जीव भी मोक्ष प्राप्त करते हैं, ऐसा इस संसार में किन्हीं वादियों का कथन है । किन्तु यह कथन समीचीन नहीं है, अतः जिनाज्ञा, का आराधक भिक्षु परिग्रह और आरंभ से रहित पुरुषों की शरण ग्रहण करे ॥३॥ -टीकार्थ___जो धन धान्य और पशु आदि परिग्रह रखते हैं वे सपरिग्रह कहलाते हैं कदाचित् परिग्रह के अभावमें भी शरीर और उपकरणोंमें जो ममत्व धारण, करते हैं वे भी सपरिग्रह ही हैं। जो पट्काय, के उपमर्दन रूप आरंभ से युक्त हों, उन्हे सारंभ कहते हैं। जैसे हिंसादि करने वाले भी मोक्ष प्राप्त २हित मन 'अणार भो-अनारम्भान' मा२ त ५३५ना 'ताण --प्राणम्' २२ मा 'परिव्वए-परिव्रजेत्' लय. 31 अनाथ પરિગ્રહથી યુક્ત અને પ્રાણાતિપાત આદિ આર ભથી યુક્ત જીવ પણ મેક્ષ પ્રાપ્ત કરી શકે છે આ પ્રકારની માન્યતા કેઈ અન્ય મતવાદીઓ ધરાવે છે, પરંતુ આ માન્યતા સાચી નથી તેથી જિનાજ્ઞા આરાધક ભિક્ષુએ પરિગ્રહ અને આર ભથી રહિત હેય એવા પુરુષનું જ શરણ સ્વીકારવું જોઇએ. - ધન, ધાન્ય, પશુ આદિનો પરિગ્રહ રાખનારને સપરિગ્રહ કહે છે કદાચ આ “વસ્તુઓના પરિગ્રહને અભાવ હોય પરંતુ શરીર અને ઉપકરણોમા મમત્વભાવ હેય,
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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