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कामयार्थबोधिनी टीकाप्र. व अ.१उ २ क्रियावादिनामनर्थ प्रदर्शने नौका प्रान्त ३४१ प्राताः । यथा-प्राकृतपुरुषाः अज्ञानप्रधानतया सावद्यकर्मण्येव प्रवृत्ता: भवन्ति, पादिमेऽपि अतिन इति. ॥३०॥ । : ( i ).
। एतस्यैवार्थस्य पोपकं दृष्टान्तं, दर्शयति, सूत्रकार::-"जहा" इत्यादि ! ! . . . .मूलम् --
. : : जहा अस्साविणि प्रणावं जाइअंधो दुरूहिया
या .. ...., इच्छई पारमोगंतु अंतरा य विसीयइ ॥३१॥
छाया--- "यथा आस्राविणीं नावं जात्यन्धो दुरूद्य । इच्छति पारमागन्तुम् अन्तराच विपीति, ॥३१।।
अन्वयार्थ:---.. (जहा) यथा,, येन प्रकारेण । (जाइ अयो) जात्यन्धः ! : स्वभावादेववे सामान्यजनोंके समान ही पापकर्म में ही प्रवृत्त रहते हैं। जैसे सामान्य लोग अज्ञान की प्रधानता के कारण सावधनायीं में ही प्रवृत्ति करते रहते हैं, उसी प्रकार ये व्रती भी सावध कर्म करते हैं ||३०|| ।।। - इसी कथन को पुष्ट करने वाला दृष्टान्त सूत्रकार दिखलाते हैं "-जहा“इत्यादि।
शब्दार्थ--'जहा-यथा' जैसे 'जाइअंधो-जात्यन्धाः' जन्मान्ध 'अस्साविणि आखाविणि' छिद्रवाली 'णावं-नावम्', नौकापर 'दुरुहिया-दुरूह्या वैठकर 'पार मागत-पारमागन्तुम' पार पहोंचनेकेलिये 'इच्छइ-इच्छति' इच्छारखता है परंतु 'अंबरा य--अन्तरा च' बीचमेंही 'विसीयह--विपीदति, ड्रवजाता है ॥३१॥
. अन्वयार्थ , जैसे कोइ जन्मान्ध पुरुष छेदों वाली नौका पर आरूढ होकर જેવી રીતે સામાન્ય લેકે આજ્ઞાનને કારણે સાવદ્ય કાર્યો કર્યા કરે છે, એજ પ્રમાણે તે વતી (ભિક્ષુઓ) પણ સાવદ્ય કાર્યો કરતા હોય છે. ૩૦ ' 'मे ४थननु समर्थन ४२वाभाटे सूत्रा२ नीयनु हटान्त मापे छे.. "जहा" त्याह
शहाथ-'जहा-यथा' म 'जाइप्रधोजात्यन्ध 'मथी' माधणे 'अस्लाविणिआनाविणी' (छद्रपा 'णाव -नायम्' 30 ७५२ 'दुरुहिया दुरुह्य' सीने 'पारमागतु -पाएमागन्तुम् सामे नारे पडायवा भाटे 'इच्छइ- इच्छति' ४२छ। राजे छ ५२तु 'मतराय अन्तरा च' क्यभार 'विसीयह-विपीदति' भी तय छे ॥3॥
-सूत्रार्थ:જેવી રીતે કોઈ જન્માન્ય પુરુષ છિદ્રોવાળી નૌકામાં બેસીને કઈ નદી અથવા