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________________ ३८१-३८५ ३८६-३९० ३९०-३९२ ३९३-३९६ ३९६-३९९ ३९९-४०१ ५० अन्यमतावलंवियों के फल प्राप्तिका निरूपण ५१ प्रकारान्तरसे देवोप्तादियों के मतका निरूपण ५२ त्रैराशिकों के मतका निरसन ५३ प्रकारान्तरसे कृतवादियों के मतका निरूपण ५४ रसेश्वरवादियों के मतका निरूपण ५५ रसेश्वरवादिक मतके अनर्थताका कथन चौथा उद्देशा ५६ पूर्वोक्तवादियों के फलप्राप्तिका निरूपण ५७ पूर्वाक्तवादियों के प्रति विद्वानों का कर्तव्य ५८ साधुओं के जीवनयात्रा निर्वाह का निरूपण ५९ उद्गम आदि दोषोंका निरूपण ६० सोलह प्रकार के उत्पादनादोषका निरूपण ६१ शंकित आदि दशप्रकार के दोपों का निरूपण ६२ ग्रासैपणा के पांच दोपों का निरूपण ६३ पौराणिकादि अन्यतीर्थिकों के मतकानिरूपण ६४ विपरीत बुद्धि जनित लोकवाद का निरूपण ६५ अन्यवादियों के मतका खण्डन के लिये अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन ६६ अन्यवादियों के मत के खण्डन में दृष्टान्त का कथन ६७ जीवहिसा के निषेध का कारण ६८ मोक्षार्थि मुनियों को उपदेश ६९ साधुओंके गुणका निरूपण ७० अध्ययन का उपसंहार दूसरा अध्ययन का पहला उद्देशा ७१ दूसरे अध्ययनकी अवतरणिका ७२ भगवान् आदिनाथने स्व पुत्रोंको दियाहुआ उपदेशवचन तीसरा उद्देशा ७३ साधुओं को परीपह एवं उपसर्ग सहनेका उपदेश द्वितीयाध्ययनपर्यन्तका प्रथमभाग समाप्त ॥२-३॥ ४०२-४०७ ४०८-४१० ४१०-४१३ ४१३-४१८ ४१९-४२१ ४२२-४२४ ४२४-४२६ ४२६-४२८ ४२८-४३५ ४३५-४४४ ४४४-४४७ ४४७-४५१ ४५१-४५३ ४५४-४५६ ४५६-४६१ ४६२ ४६३-६२६ ६२७-६८८
SR No.009303
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages701
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size38 MB
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