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विषय
पृष्ठाङ्क संयमाराधनमें सावधान, हेयोपादेयके ऊपर सर्वदा दृष्टि रखनेवाले, अव्यावाध आनन्दस्वरूप मोक्षके अभिलापी और कपायों से निवृत्त होते हुए यथावस्थित लोककी-कर्मलोक अथवा विपयलोककी उपेक्षा करते हुए थे, वे चाहे पूर्व-आदि कसी भी
दिशामें रहे हुए हों; सत्य मार्ग में ही स्थित थे। ६८४-६८७ २१ ग्यारहवें सूत्रका अवतरण और ग्यारहवां मूत्र ।
६८७ ___२२ वीर-समित-आदि विशेषणोंसे युक्त उन महापुरुपोंके ज्ञानका
वर्णन हम आगे करेंगे । क्या उनको उपाधि है ? पश्यकको उपाधि नहीं होती है। उद्देशसमाप्ति ।
६८७-६८८ २३ चतुर्थ उद्देशकी टीकाका उपसंहार ।
६८९-६९० ॥ इति चतुर्थो देशः ॥