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________________ - ष्ठाङ्क --maina ६६६ ॥ अथ चतुर्थो देशः॥ विषय . १ तृतीय उद्देशके साथ चतुर्थ उद्देशका सम्बन्धप्रतिपादन, प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र । २ मातापिता आदिके सम्बन्धको या असंयमको छोड़कर और संयमको प्राप्तकर, शरीरको प्रथम प्रव्रज्याकालमें साधारण तपसे, बादमें प्रकृष्ट तपसे, और अन्तमें पण्डित मरणद्वारा शरीरत्यागकी इच्छासे युक्त हो मासार्द्धमास क्षपणादि तपोंसे पीडित-कृश करे ।६६६-६६७ ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय सूत्र। ६६८ ४ उपशमका आश्रयण करके कर्मविदारणमें समर्थ, संयमाराधनमें खेदरहित, जीवनपर्यन्त संयमाराधनमें तत्पर और समिति एवं सम्यग्ज्ञानादि गुणोंसे युक्त हो कर मुनि सर्वदा संयमाराधनमें प्रयत्नयुक्त रहे । ५ तृतीय सूत्रका अवतरण और तृतीय सूत्र । ६६८-६६९ ६ मोक्षगामी वीरोंका यह संयमरूप मार्ग कठिनतापूर्वक सेवनीय है। ६६९ ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र। ६६९ ८ अन्तप्रान्त आहारादिसे और अनशनादिसे अपने शरीरके मांस शोणितको मुखाओ। इस स्वशरीरशोषक मोक्षार्थी पुरुषको तीर्थङ्करोंने कमविदारण करनेमें समर्थ और श्रद्धेयवचन कहा है। और जो ब्रह्मचर्य महाव्रतमें तत्पर होकर कर्मोपचयका क्षपण करता है वह भी श्रद्धेयवचन है। ६६९-६७० ९ पञ्चम सूत्रका अवतरण और पञ्चम सूत्र । साधु विषयोंसे अपनी इन्द्रियोंको हटा कर भी ब्रह्मचर्यमें स्थित हो कर भी और श्रद्धेयवचन हो कर भी यदि शब्दादि विषयभोगोंमें आसक्त होता है तो वह वाल अपने कर्मबन्धको काटने में समर्थ नहीं होता! वह बाल मातापिता आदिके सम्बन्धको या असंयम सम्बन्धको नहीं छोड़ पाता!आत्महितको ६७०
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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