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________________ ५७ । विषय ६ प्रमादी को सबसे भय रहता है और अप्रमादीको किसी से भी नहीं !४७५-४७७ ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र। ४७७-४७८ ८ जो एकका उपशम करता है वह बहुतका उपशम करता है, जो बहुतका उपशम करता है वह एकका उपशम करता है। ४७८-४७९ ९ पांचवें सूत्रका अवतरण और पांचवां सूत्र । ४७९ १० धीर मुनि-षड्जीवनिकायलोकके दुःखकारण कौंको जानकर, पुत्रकलत्रादि तथा हिरण्यसुवर्णादिकी ममता छोड़कर चारित्रको ग्रहण करते हैं और परसे पर जाते हैं, ऐसे मुनि अपने जीवन की अभिलाषा नहीं रखते हैं। ४८०-४८५ ११ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सत्र । ४८५ १२ एकका विवेचन करते हुए दूसरोंका भी विवेचन करता है, दूसरोंका विवेचन करते हुए एकका भी विवेचन करता है। ४८६-४८७ १३ सातवें सूत्रका अवतरण और सातवां मूत्र । ४८७ १४ मोक्षाभिलाषरूप श्रद्धावाला, जैनागमके अनुसार आचरण करता हुआ, मेधावी अप्रमत्त संयमी क्षपकश्रेणीको प्राप्त करता है। ४८७-४८८ १५ आठवें सूत्रका अवतरण और आठवां सूत्र। ४८८ १६ पड्जीवनिकायके स्वरूपको जिनोक्त प्रकारसे जानकर, जिससे षड़जीवनिकाय लोकको किसी प्रकारका भय न हो उस प्रकार से संयमाराधन करे। ४८८-४८९ १७ नवम सूत्रका अवतरण और नवम सूत्र । ४८९ १८ शस्त्र परसे पर है और अशस्त्र परसे पर नहीं है। ४८९-४९१ १९ दशम सूत्रका अवतरण और दशम सूत्र । ४९१ २० भावशस्त्र परसे पर होता है, अर्थात्-ज़ो क्रोधदर्शी होता है वह क्रमशः तिर्यग्दर्शी-निगोदभवसम्बन्धी दुःखोंको देखनेवाला होता है। ४९२-४९४ २१ ग्यारहवें सत्रका अवतरण और ग्यारहवां सूत्र । ४९४
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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