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अध्य० २. उ. ३ कारण जो विषय और परिग्रहादिक हैं उनमें गृद्ध न बने । इस प्रकार से सत्रकार का शिष्य के प्रति यह उपदेश है। 'ब्रवीमि' इस पद का पहिले के प्रकरणों में अर्थ कहा जा चुका है ॥ सू० ८ ॥
॥ दूसरे अध्ययनका तृतीय उद्देश संपूर्ण ॥
છે તેમાં વૃદ્ધ ન બને. આ પ્રકારે સૂત્રકારનો શિષ્ય પ્રતિ આ ઉપદેશ છે. इति ब्रवीमि मा पहनी पडसा प्रणमा अर्थ ४२वाम मावेस छे.
॥ भी अध्ययननी श्री देश सपूर्ण २-3 ॥