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________________ आचारानमत्रे - आचारसूत्रे मुनिघासिलाल, प्रयत्नतः साधुननेएसिद्धथै । आचारचिन्तामणिमादधेऽहं, भव्याः सदने हृदि धारयन्तु ॥ २ ॥ अनेक लब्धिपाहि चौदह पूर्वधारक जो तथा, ___ ..अध्यात्मशक्ति विभूतियुक्त विराजते हैं जिन यथा ॥ . (२) आचार्य गणधर लोक हित गौतमपदाम्बुज में नती, मेरी विराजे सर्वदा देवे विमल मति शुभ गती। निदोपतत्वनिरूपिणी उनकी समुज्ज्वल भारती, धरते उसे हिय में सदर जो भन्यजन को तारती । विनीत 'घासीलाल' मुनि जनता तथा मुनि के लिये, भगवत्सुभाषितरत्न 'आचाराङ्ग गुणगुंफित किये। मणिमालिका के रूपमें करते प्रकाशित हैं अभी, आचारचिन्तामणि हृदयगृह में रखे जनता सभी । जड द्रव्य चिन्तामणि हृदयर्षे बाहिरे जाते धरे, 'आचारचिन्तामणि' (टीका) हृदयमै धारिता तमको हरे । सब भन्यजन संसार वन में घूमते इसको गहे, • जिससे प्रकाशित मार्ग हो निज उदय पद सत्वर लहे ।।
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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