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________________ विषयप्रत्येक दिशा विदिशा में पृथिवी आदि माश्रित प्रसजीवों को परिताप ११. देने से संसार भ्रमणकाय के समारम्भ में अन्य प्राणियों की हिंसा काय की हिंसा में परिज्ञा ( सकाय समारंभदोष ) उपभोगद्वार वेदनाद्वार सजीव विराधनाफल सजीवहिंसामयोजन उपसंहार उद्देशसमाप्ति सप्तम उद्देश (वायुकाय ) वायुकायविराधनविवेक वायुकायलक्षण वायुकाय प्ररूपणा वायुकायपरिमाण वायुकामशास्त्र वायुकाय की हिंसा में पड़जीवनिकायरूप लोक की हिंसा द्रव्यलिङ्गिकृत वायुकाय विराधना वायुकायोपभोग वायुविराधनादोप वायुविराधनापरिहार मुखवस्त्रिकाविचार पइनिकायारम्भदोप पहजीवविराधनापरिहार प्रथम अध्ययन समाप्ति . पृष्ठाङ्क ६५७ ६५९ ६६३ ६६४ ६६६ ६६७ ६७० ६७३ ६७५ ६७६ ६७७ ६८३ ६८४ ६८५ ६८६ ६८९ ६९० ६९३ ६९६ ७०० ७०४ ७१२ ७१७ ७२०
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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