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आचारायचे अहमिति ज्ञानम् आत्मविषयकं जायते । आत्मरूपविपयामा विपयिणोऽनुत्यानप्रसंगात् । न च देह एवास्य ज्ञानस्य विषय इति वाच्यम् । जीवरहितेऽपि देहे तदुत्पत्तिप्रसंगात् । अस्मिन्नहम्प्रत्यय आत्मविषयके सति तु किमहस्मि नास्मीति संशयो नोपपद्यते, अहम्प्रत्ययविषयस्यात्मनः सदाबादहमस्मीति निश्चय एव संभवति । आत्मास्तित्वसंशये तु फस्यायमहम्मत्ययः स्यात् , निर्मूलत्वेन तदनुत्थानप्रसङ्गात् । यदि संशयी जीव एव नास्ति, तर्हि अस्ति नास्तीति संशयः कस्य भवतु । संशयो हि विज्ञानाख्यो गुण एव, न च गुणिनमन्तरेण गुणः सिध्यति।
अभाव में विषयी अर्थात् ज्ञान की उत्पत्ति नहीं हो सकती। शरीर हो इस ज्ञान का विपय है-अर्थात् 'अहम् ' (मैं) का अर्थ आमा नहीं वरन् शरीर है, ऐसा कहना उचित नहीं, क्यों कि-ऐसा होता तो मृत शरीर में भी अहम्प्रत्यय होने लगता। आत्मा को विपय करनेवाले इस अम्हप्रत्यय की विधमानता में ' मैं हूँ या नहीं हूँ', इस प्रकार का संशय ही नहीं होता है, अहम्प्रत्यय के विषयमूत आत्मा का सद्भाव होने से 'मै हूँ ' इस प्रकार का निश्चय ही हो सकता है। आत्मा के अस्तित्व के विपय में संशय किया जाय तो प्रश्न उपस्थित होता है कि यह महम्प्रत्यय किसे होता है । विना कारण के ही तो उसकी उत्पत्ति नहीं हो सकती । यदि संशय करने वाला जीव ही नहीं है तो है या नहीं ?' इस प्रकार का संशय' करता कौन है? संशय एक प्रकार का ज्ञान-गुण है और गुण, गुणी के अभाव में नहीं हो सकता। .
વિષયના અભાવમાં વિષથી અર્થાત્ જ્ઞાનની ઉત્પત્તિ નથી થઈ શકતી. શરીર જ આ जानना विषय छ, अर्थात् 'म , ()अर्थ मात्मा नथी म शरीर छ, એમ કહેવું તે ઊંચિત નથી, કેમકે જો એમ હોય તે મૃત શરીરમાં અહમ્મત્યય
४. आत्माने विषय ४२१॥ वाणी मा-मम्प्रत्ययनी, विधमानतामा "छु કે નથી ” આ પ્રકારને સંશય જ થતું નથી અહઋત્યના વિષયભૂત मात्मानो सहला डोपाथी “छु" 2 रन निश्चय १ ईश छ. આત્માના અસ્તિત્વના વિષયમાં સંશય કરવામાં આવે તે પ્રશ્ન ઉપસ્થિત થાય છે કે આ અહમ્મત્યય કોને થાય છે? કારણ વિના તે તેની ઉત્પત્તિ થઈ શકતી નથી જે સંશય કરવા વાળે જીવ નથી તે “હું છું કે નહિ” એ પ્રકારને સંશય કરનાર શા છે ? સંશય એક પ્રકારને જ્ઞાન-ગુણ છે, અને ગુણ ગુણીના અભાવમાં થઈ शत। नथी.