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आचाराचे विशेषकल्पनारहितसामान्यज्ञानोतरं - विशेषनिश्चयार्थ विचारणा-ईहा। यथास्पर्शनेद्रियेण स्पर्शसामान्ये ! ज्ञाते सति, तदनुः कीदृशोऽयं • स्पर्शः १, कस्यायं स्पर्शः ?किमयं कमलनालस्पर्शः उताहो भुजङ्गमस्पर्शः? इति गाढान्धकारे चक्षुष्मतोऽपि विचारणा मवर्तते।
(२) अंपोह:अपोहनम्-अपोहः निश्चयः । कोऽयमपोहः ? उच्यते-मतिज्ञानस्यावग्रहादि- । भेदचतुष्टये तृतीयभेदो योऽपायः स .. एवापोइंशन्देनोच्यते। अवग्रहादिभेदचतुष्टयं च नन्दीमत्रे भगवतैव प्रदर्शितमस्ति । कल्पना से रहित सामान्यज्ञान के पश्चात् , होने वाली विचारणा ईहा कहलाती है । जैसे-स्पर्शनेन्द्रिय के द्वारा स्पर्शका सामान्य ज्ञान होने के पश्चात् गाढ अन्धकार होने पर चक्षुवाले को भी यह विचारणा होती है कि '.यह स्पर्श कैसा है ? :किसका यह "स्पर्श है ? ' यह कमल' के 'नाल का स्पर्श है या सर्प का स्पर्श है ?, 'इस' प्रकार की विचारणा को ईहा कहते हैं ।११
(२) अपोहअपोह का अर्थ हैं-निश्चय । अपोह क्या है ? कहते ' है-भतिज्ञान के अवग्रह आदि चार 'भेदों में तीसरा भेद जो अपाय' है उसी को यहाँ 'अपोह' शब्द द्वारा कहां है । अवग्रह आदि चार भेद नन्दीसूत्र में भगवान्ने कहें हैं। કલ્પનાથી રહિત, સામાન્ય જ્ઞાનની પછી થવા વાળી વિચારણાને ઈહા કહે છે, જેમકે - 'સ્પર્શનેંદ્રિયના દ્વારા સ્પર્શનું સામાન્ય જ્ઞાન થયા પછી ગાઢ અંધકાર થાય ત્યારે
नेत्रपाणान. पाय-क्यिार थाय छ-सा स्पशवो छ १ मा गरी १५शयो "छ..शेने २५श. छ१, २मा भान नाणना २५श छ) है सपना स्पर्श छ ?, • मा • પ્રકારની વિચારણા તેને ઈહા કહે છે.
' (२). Angઅહિને અર્થ છે નિશ્ચય; એપિUએ શું છે? કહે છે કે–મેતિજ્ઞાનના અવગ્રહ આદિ ચાર ભેદ પિકીને ત્રીજો ભેદ જે અપાય છે, તેને અહિં “અહ” શબ્દથી
से छ. म माहियार ले नासूत्रमा भगवान सा छे.