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आचारचिन्तामणि टीका अवतरणा पुद्गलास्तिकाय
. . पुद्गलानां विशेषगुणाःवर्णगन्धरसस्पर्शाः पुद्गलानां विशेपगुणाः सहभाविनः परिणामाः । शब्द-बन्ध-सौम्य-स्थौल्य-संस्थान-भेद-तम-छाया-ऽऽतपो-द्योतादिभिः पर्यायैः पुद्गला लक्ष्यन्ते ज्ञायन्ते, इत्याशयेन भगवता पुद्गलानां लक्षणतया शब्दादयः प्रोक्ताः । तथाहि
"सईधयार उज्जोओ, पमा छायाऽऽत्तवृत्ति वा वण्णरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥१॥" (उत्त० अ० २८) .
पुद्गलों के विशेष गुण---- वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श पुद्गलो के विशेष ( असाधारण) गुण हैं-सहभावी परिणाम हैं । शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान (आकार ), भेद, तम, छाया, आतप, उद्योत आदि पर्यायों के द्वारा पुद्गल लखा जाता है-~-जाना जाता है । इस आशय से भगवान् ने शब्द आदि को पुद्गलों का लक्षण कहा है, वह इस प्रकार"सबंधयार उज्जोओ, पभा-छाया-ऽऽतयुत्ति वा, वण्णरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं" शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गन्ध, और स्पर्श, ये सब पुद्गलों के लक्षण हैं । गाथा में 'छायाऽऽतयुत्ति' यहाँ 'इति' शब्द आदि के अर्थ में है। इस आदि शब्द से वर्ण आदि का ग्रहण हो सकता था फिर भी उन्हें अलग कहने का कारण यह है कि वे नित्य सहभावी गुण हैं।
सना विशेष गुणવર્ણ, ગંધ, રસ અને સ્પર્શ પુદગલના વિશેષ (અસાધારણ ) ગુણ છે— सहलावी परिणाम छ श, मध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान (आ४२) लेह, तम, છાયા, આતપ, ઉદ્યોત આદિ પર્યાથી લખી શકાય છે—જાણે શકાય છે. તે આશયથી ભગવાને શદ આદિ પુદ્ગલેનું લક્ષણ કર્યું છે, તે આ પ્રમાણે છે– " सबंधयार उज्जोओ, पमा छाया-ऽऽतवुत्ति वा, वण्णरसगंधफासा; पुग्गलाणं तु लक्खणं" Avt, A २, धोत प्रमा, छाया, मात५, प, रस, गंध मन स्पर्श, से पुगतानु लक्ष छ. मायामां-'छायाऽऽतवुत्ति' महि 'इति' श६ माहिना मथभा छ, એ પ્રમાણે “ િશબ્દથી વર્ણ વગેરેનું ગ્રહણ થઈ શકે છે તે પણ તેને અલગ કહેવાનું કારણ એ છે કે તે નિત્ય સહભાવી ગુણ છે. '