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________________ १५ (श्री दशवेकालिकत्रा सम्मतिपत्र ) ॥ श्री वीरगीतमाय नमः ॥ सम्मतिपत्रम् मए पंडितमुणि हेमचंदेण य पंडिय-मूलचन्दवासवारा पत्ता पंडिय - रयण-मुणि- घासीलालेण विरया सक्कय- हिन्दी-भाषाहि जुत्ता सिरि- दसवेयालिय-नामसुत्तस्स आयारमणिमंजूसा वित्ती अवलो इया, इमा मणोहरा अस्थि, एत्थ सदाणं असयजुत्तो अन्धो वण्णिओ, विरजणाणं पायजणा य परमोवयारिया इमा वित्ती दीसह । आधारeिer वित्तीकसारेण असयपुण्यं उल्लेहो कहो, तहा अहिंसाए सरूवं जे जहा तहा न जाणंति सिंहमा वित्तीए परमलाहो भविस्सह, कणा पत्तेयविसयाणं फुडवेण वण्णणं कडे, तहा मुणिणो अरहन्त्ता इमाए वित्तीए अवलोयगाओ अइसयजुत्ता सिज्झइ । सकयछाया सुत्तपयाणं पयच्छेओ य सुबोहदायगो अस्थि, पत्तेयजिण्णासुणो इमा वित्ती दट्टव्या । अम्हाणं समाजे एरिसचिज्ज- मुणिरयणाणं सम्भावो समाजस्स अहोभग्गं अत्थि, किं उत्तविज्जमुणिरयणाणं कारणाओं, जो अम्हाणं समाजो सुत्तप्पाओ अम्हकेरं साहिच्चं च लत्तप्पार्य अस्थि, तेसिं पुणोवि उदओ भविस्सइ ? जस्म कारणाओ भवियप्पा मोक्खस्स जोग्गो भविता पुणो निव्वाणं पाविहिह । अओहं आयारमणिमंजूसाए कसुणो पुणो पुणो धन्नवार्य देमि- ॥ वि. सं. १९९० फाल्गुन शुक्लत्रयोदशी महले (अलवरस्टेट) इ६ उवज्जाय जण मुणी, आयारामो (पंचनईओ) ऐसे ही :-- मध्यभारत सैलाना - निवासी श्रीमान् रतनलालजी डोसी श्रमणोपासक जैन लिखते हैं कि श्रीमान् की की हुई टीकावाला उपासकदशांग सेवक के दृष्टिगत हुवा, सेवक अभी उसका मनन कर रहा है, यह ग्रन्थ सर्वाङ्गसुन्दर एवम् उच्च कोटि का उपकारक है।
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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