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आचारचिन्तामणि- टीका अवतरणा
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नक्षत्राणि तिथिर्वारा-स्ताराचन्द्रबलं ग्रहाः । दुष्टान्यपि शुभ भावं भजन्ते सिद्धछायया ॥ १ ॥
न तिथिर्न च नक्षत्रं, न वारा न च चन्द्रमाः । ग्रहा नोपग्रहाथैव, छायालग्नं प्रशस्यते ॥ २ ॥
न योगिनी न विष्टिव, नशूलं न च चन्द्रमाः । एपा चत्रमयी सिद्धि - रभेद्या त्रिदशैरपि ॥ ३ ॥
"सिद्धच्छाया उम हो तो दूषित तिथि नक्षत्र, चार, तारा, चन्द्र तथा दूषित ग्रह भी शुभफलदायक हो जाते हैं, अर्थात् सिच्छायाम की विद्यमानता में नक्षत्र आदि का दोश
नहीं माना जाता है ॥ १ ॥
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एक मात्र छाया उम ही उत्तम है, उसकी समानता न तिथि कर सकती है, न नक्षत्र कर सकता है, न वार कर सकता है, न चन्द्रमा, न ग्रह कर सकते हैं और न उपग्रह ही
कर सकते हैं || २ ||
योगिनी उसके सामने कुछ नहीं है, विष्टि (भद्रा ) कोई चीज नहीं है, शूल और चन्द्रमा भी उस की विद्यमानता में कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । सिद्धच्छाया लग्न एक ऐसी वज्रमयी सिद्धि है, किसे देवता भी नहीं भेद सकते || ३ ||
'सिद्धछायासन्न होय तो हृषित नक्षत्र, तिथि, वार, तारा, चंद्र तथा કૃતિ ગ્રહ પણ શુભ થઇ જાય છે, અર્થાત્ સિદ્ધછાયાલગ્નની હાજરીમાં નક્ષત્ર माहिनो होष मानवामां आवतो नधी ॥१॥"
એક માત્ર છાચાલન જ उत्तम छे. तेनो भुभ्रमसेो तिथि, नक्षत्र, वार, ચંદ્રમાં ગ્રહે અને ઉપગ્રહ કાઇ પણ કરી શકતા નથી. 1॥ ૨ ॥
ચેગિનીનું તેના સામે ખળ નથી. વિષ્ટિનું પણ ખળ નથી, શૂળ અને ચન્દ્ર પશુ છાયાલગ્નની હાજરીમાં કોઈ પ્રકારે કાંઇ પણ બગાડી શકતા નથી. સિદ્ધ છાયાલગ્ન એક એવી વામી સિદ્ધિ છે જેને દેવતા પણ ભેદ્દી શકતા નથી. }}}}'