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________________ DURATSANSAR णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन HER आचार्य महाप्रज्ञ ने मंत्र का विश्लेषण करते हुए एक स्थान पर लिखा है :-- "मंत्र एक प्रतिबोधात्मक शक्ति है, मंत्र एक कवच है, मंत्र एक प्रकार की चिकित्सा है। संसार में होने वाले प्रकंपनों से कैसे बचा जा सकता है, उनके प्रभावों को कैसे कम किया जा सकता है ? इन प्रश्नों का उत्तर है, व्यक्ति प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास करे और मंत्र की भाषा में कहा जा सकता है- कवचीकरण का विकास करे।" मंत्र त्रैकालिक होता है। वह किसी काल-विशेष से संबद्ध नहीं है। उसका प्रभाव शास्त्रोक्त है। इसलिये कोई यह कहे कि वर्तमान युग में मंत्राराधना की कोई महत्ता या उपादेयता नहीं है तो यह सर्वथा अयथार्थ है। मंत्र सत्य है। सत्य सर्वकालवर्ती होता है। | मंत्र-रहस्य में कहा गया है :- "मंत्र की सत्ता अपने आप में सर्वोपरि है। इसका प्रभाव निश्चित और स्थायी होता है परंतु दुःख इस बात का है कि धीरे-धीरे हमारी वर्तमान पीढ़ी मंत्र की उपयोगिता के महत्त्व को अस्वीकार करने लगी है तथा इसकी उपयोगिता को नकारने लगी है। लोगों में इतना धैर्य नहीं रह गया है कि वे सही गुरु की खोज कर मंत्र की मूल ध्वनि को प्राप्त कर सकें।" | जिस प्रकार मनन का मानव-जीवन के साथ सार्वदिक संबंध है, उसी प्रकार मंत्र के साथ भी उसका संबंध है। मंत्र मानव-जीवन के उन्नयन का नि:संदेह अनन्य हेतु है। मंत्र शब्द 'मन्' धातु (दिवादि ज्ञाने) से ष्ट्रन् (त्र) प्रत्यय लगाकर बनाया जाता है। इसका व्युत्पत्ति के अनुसार यह अर्थ भी होता है-'मन्यते ज्ञायते आत्मादेशोऽनेनेति मन्त्र: । अर्थात जिसके द्वारा आत्मा का आदेश- निजानुभव जाना जाए, वह मन्त्र है। । दूसरी तरह से तनादिगणीय ‘मन्' धातु से (तनादि अवबोधे) 'ष्ट्रन' प्रत्यय लगाकर मंत्र शब्द बनता है, उसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है 'मन्यते विचार्यते आत्मदेशो येन स मन्त्र:'- अर्थात जिसके द्वारा आत्मादेश पर विचार किया जाए, वह मंत्र है। तीसरे प्रकार से सम्मानार्थक मन् धातु से 'ष्ट्रन्' प्रत्यय करने पर मन्त्र शब्द बनता है। इसका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है “मन्यन्ते सक्रियन्ते परमपदे स्थिता आत्मान: यक्षादिशासनदेवता वा अनेन इति मन्त्रः।" अर्थात् जिनके द्वारा परमपद में स्थित पाँच उच्च आत्माओं का अथवा यक्षादि शासन-देवों का सत्कार किया जाए, वह मन्त्र है। Relan FACHEMENTROSHAN AMESHLARSHANKHNAAD १. एसो पंच णमोक्कारो, पृष्ठ : १२. २. मंत्र रहस्य, पृष्ठ : २२. 45 MNSAHARANE R
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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