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________________ SANSAR Y SHES NAMASAWAS ENTERNET णमो सिध्दाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन स और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों में मान्य है। केवल थोड़े से सूत्रों में भेद किया जाता है। दिगंबर-परंपरा में उमास्वाति के बदले उमास्वामी नाम प्रसिद्ध है। श्रवणबेलगोला के १०८ वें शिलालेख में उनका वर्णन है। आचार्य उमास्वाति का समय वि.सं. प्रथम शती से तीसरी शती के मध्य माना जाता है। MATHASANNELE INSPIRAMIRE आचार्य समंतभद्र आचार्य समंतभद्र दिगंबर-परंपरा में बहुत प्रभावक आचार्य थे। उन्हें भावी तीर्थंकर माना जाता है। अनुमानत: उनका समय विक्रम की तीसरी-चौथी शताब्दी है। उन्होंने आप्तमीमांसा, बृहद्-शयंभूस्तोत्र, युक्त्यनुशासन, जिनस्तुति-शतक तथा रत्नकरंडश्रावकाचार नामक ग्रंथ लिखे। Post आचार्य सिद्धसेन विक्रम की पाँचवीं शताब्दी में आचार्य सिद्धसेन हुए, ऐसा माना जाता है। जिस प्रकार उमास्वाति दिगंबर एवं श्वेतांबर दोनों परंपराओं में मान्य हैं, उसी प्रकार आचार्य सिद्धसेन भी दोनों संप्रदायों में समादत हैं, श्वेतांबर-परंपरा में वे सिद्धसेन दिवाकर के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होंने प्राकृत में | 'सन्मतितर्क' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की। प्राकृत भाषा में नैयायिक शैली में जैनदर्शन पर | लिखा गया यह ग्रंथ अति महत्त्वपूर्ण है। इन्होंने सूक्तिमुक्तावली नामक ग्रंथ की भी रचना की। आचार्य देवनंदी, अकलंक, मल्लवादी, हरिभद्र, माणिक्यनंदी अनंतवीर्य, प्रभाचंद्र, शुभचंद्र, जिनभद्र, अभयदेव, हेमचंद्र तथा यशोविजय आदि दिगंबर-श्वेतांबर परंपराओं में महान् विद्वान् हुए, जिन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की। आचार्य हरिभद्र, हेमचंद्र तथा शुभचंद ने जैन योग पर भी महत्त्वपूर्ण रचनाएं कीं; जो आध्यात्मिक साधना एवं योगाभ्यास की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। । आचार्य हरिभद्र हरिभद्र जैन जगत् के परम प्रभावक, विद्यानिष्णात आचार्य थे। ये चित्तौड़ के राजपुरोहित थे। घटना-विशेष द्वारा प्रभावित होकर जैन धर्म में प्रवजित हुए। उन्होंने अपने वैदृष्य एवं प्रभावशाली व्यक्तित्त्व द्वारा जैन धर्म की अत्यधिक प्रभावना की। आचार्य हरिभद्र अनेक विषयों के प्रकाण्ड विद्वान् थे। ऐसी मान्यता है कि उन्होंने १४४४ ग्रंथों की रचना की। आज उन द्वारा रचित लगभग १०० ग्रन्थ प्राप्त हैं। कतिपय आगमों की टीकाओं के अतिरिक्त उन्होंने योगदृष्टिसमुच्चय, योगबिन्दु, योगशतक, योगविंशिका, धर्मबिन्दु, शास्त्रवार्ता-समुच्चय आदि महत्त्वपूर्ण ग्रंथ रचे। उन द्वारा प्राकृत में रचित समराइच्चकहा का कथा-साहित्य में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। 40 BE KATH SHARE o । me HAWANITY
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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