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________________ सिद्धत्व-पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य । यह केवल मुँह से बोले जाने वाले शब्दों तक ही सीमित नहीं है। यह आंतरिक भावों की ऐसी संवेगमय दशा है, जिससे मन बाह्य भावों को छोड़ कर आत्मभाव में आने को प्रयत्नशील होता है। ५. कायोत्सर्ग यह काय+उत्सर्ग इन दो शब्दों के सम्मिलन से बना है। उत्सर्ग का अर्थ परित्याग है। काय या शरीर का त्याग 'कायोत्सर्ग' कहा जाता है। यहाँ यह विचारणीय है कि कोई काय या शरीर का त्याग नहीं कर सकता। शरीर तो जितना आयुष्य-कर्म बंधा हुआ है, वहाँ तक विद्यमान रहता ही है। अत: यहाँ शरीर के उत्सर्ग या त्याग का अर्थ शरीर के प्रति आसक्ति और ममता का त्याग है। बुद्धियाँ दो प्रकार की बतलाई गई हैं- (१) देहबुद्धि और (२) आत्मबुद्धि । जहाँ आत्म-तत्त्व को ही सत्य अथवा प्रधान माना जाता है, उसे आत्मबुद्धि कहा जाता है। जहाँ देह को ही प्रधान माना जाता है, उसे देहबुद्धि कहा जाता है। जहाँ आत्मबुद्धि की प्रधानता होती है, वहाँ मनुष्य यह सोचता है कि मैं शरीर नहीं हूँ, आत्मा हूँ। कायोत्सर्ग में साधक अपने मन में इसी भाव को प्रबल बनाता है। इसकी प्रबलता से आत्म-भाव की वृद्धि होती है। ६. प्रत्याख्यान यह छठा आवश्यक है। प्रत्याख्यान का अभिप्राय-मिथ्यात्व, अज्ञान और अंसयममय भावों का तथा बाह्य भोज्य पदार्थों का परित्याग करना है, जो क्रमश: भाव-प्रत्याख्यान और द्रव्य-प्रत्याख्यान कहलाते हैं। प्रत्याख्यान से व्रत रूप गुणों का सम्मान होता है। दुष्प्रवृत्तियों का निरोध तथा सत्प्रवृत्तियों का स्वीकार इससे सधता है, इच्छाओं का नियन्त्रण, तृष्णा का परिहार और सद्गुणों का विकास होता है। आगमों पर व्याख्या-साहित्य जैन संस्कृति, धर्म एवं दर्शन के मुख्य आधार आगम हैं। उनमें उन सिद्धांतों, मर्यादाओं तथा आचार-संहिताओं का विस्तृत विवेचन है, जिनके आधार पर जीवन को बल प्राप्त होता है, क्योंकि जीवन का आधार विचार-चेतना है। वैचारिक भित्ति पर ही उसका समग्र विस्तार और विकास टिका हुआ रहता है। | आगमों में ऐसी ही महत्त्वपूर्ण विचार-संपदा सन्निविष्ट है, जिसमें ज्ञान और क्रिया दोनों को परिमार्जित, परिष्कृत और शुद्ध बनाने का मार्ग दिखलाया गया है।
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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