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________________ S णमो सिद्धाणं पद: समीक्षात्मक परिशीलन णमोक्कार सिद्ध मंत्र है। सिद्ध मंत्र उसे कहा जाता है, जिसमें योग सिद्ध महापुरुषों की शक्ति निहित हो और जो स्वयं शक्तिमान हो तथा साधना से फल देता हो । चमत्कार हेतु णमोक्कार मंत्र का उपयोग करना उचित नहीं है, किन्तु यह भी सत्य है कि मंत्राराधना से, साधना से स्वयं चमत्कार हो जाते हैं। साधक को चमत्कारों में कदापि आसक्त नहीं होना चाहिए। नमस्कार मंत्र का जप आत्म- अभ्युदय, सहज आनंद की प्राप्ति, आत्मशक्ति के जागरण एवं आत्म-निर्मलता के लिए किया जाता है । आत्मबल के संचय के साथ-साथ विलक्षण और | चामत्कारिक उपलब्धियाँ भी होती हैं, किन्तु सिद्धत्व पद का आराधक कभी चमत्कारों के आकर्षण में नहीं पड़ता। प्रस्तुत शोध ग्रंथ में णमोक्कार के यथार्थ प्रयोग की चर्चा की गई है। णमोक्कार का सर्वथा आत्मोत्कर्ष की दृष्टि से उपयोग करने वाला साधक अपनी साधना में उत्तरोत्तर आगे बढ़ता जाता है, जिसकी अंतिम प्राप्ति सिद्धावस्था है। अन्य मंत्रों की तुलना में णमोक्कार मंत्र की एक अद्भुत विलक्षणता है। अन्य मंत्रों में इष्ट के साथ अनिष्ट का भय रहता है, लाभ के साथ हानि की आशंका जुड़ी रहती है। णमोक्कार मंत्र माता के दूध की तरह सौम्य, पौष्टिक एवं शक्तिप्रद है । इससे कभी भी किसी का अनिष्ट नहीं हो सकता । माता का दूध शिशु के शरीर की पुष्टि भी करता है, वृद्धि भी करता है, रक्षा भी करता है तथा विकास भी करता है । उसी प्रकार णमोक्कार मंत्र हमारी आत्मशक्ति की पुष्टि एवं वृद्धि करता है । बाह्य अशुभ शक्तियों से रक्षा करता है । वह सर्वतोमुखी उन्नति का हेतु है । उसके स्मरण से, चिंतन से, दुःख, अवसाद, चिंता, भय, रोग, शोक, संकट तथा आपत्तियाँ सभी इस प्रकार नष्ट हो जाती हैं, जैसे सूर्य के उदित होने से अंधकार नष्ट हो जाता है। 1 णमोक्कार मंत्र के एहिक, पारलौकिक या आध्यात्मिक प्रभाव का इस अध्याय में विस्तार से विश्लेषण किया गया है। संपूर्ण जैन समाज में णमोक्कार मंत्र की आराधना, जप, ध्यान और स्मरण की परंपरा प्रचलित है, किंतु इसकी साधना करने वाले कतिपय जन ऐसा कहते हुए मिलते है कि हमें इसके चमत्कार का कोई अनुभव नहीं होता । चमत्कार के संबंध में प्रस्तुत शोध ग्रंथ में गंभीरता पूर्वक विचार किया गया है। लोगों का मन | अधिकांशत: सांसारिक भावों में रमण करता है । उनको सांसारिक सुख, धन, वैभव- ये प्रिय लगते हैं। यदि णमोक्कार की आराधना से इनके प्रति मन में वैराग्य उत्पन्न हो जाए तो यह एक आध्यात्मिक चमत्कार है, क्योंकि ऐसा होना कोई सामान्य बात नहीं है । सांसारिक एषणाओं को छोड़ना बहुत कठिन है। / 477 32
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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