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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन उससे वरिष्ठ या श्रेष्ठ कोई नहीं है। उनके नमन की बहुत बड़ी फलवत्ता है। प्रस्तुत शोध-ग्रंथ का मूल विषय णमो सिद्धाणं' पद से सम्बद्ध है। स्वरूप, वैशिष्ट्य, साधना-क्रम इत्यादि अनेक अपेक्षाओं से सिद्ध-पद पर इसमें समीक्षात्मक शैली में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। सार-संक्षेप प्रस्तुत शोध-ग्रंथ सात अध्यायों में विभक्त है। उनका सार संक्षेप इस प्रकार है प्रथम अध्याय प्रथम अध्याय में जैन धर्म, दर्शन और साहित्य पर प्रकाश डाला गया है। ऐतिहासिक दृष्टि से | जैन धर्म काल की सीमा में आबद्ध नहीं है। वह अनादि है। विभिन्न युगों में तीर्थंकरों द्वारा उद्भासित होता रहा है। संयम, विरति, साधना, तपश्चरण, शील, सद्भावना आदि आचारमूलक सिद्धांत और अनेकांत दर्शन पर वह आधारित है । वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत हमें आगमों के रूप में प्राप्त हैं। ___सिद्ध-पद' जैन धर्म और दर्शन का वह परम तत्त्व है, जिस पर साधना के बहुमुखी आयाम आश्रित हैं। वही साधक का चरम साध्य है। आगमों और पश्चाद्वर्ती जैन साहित्य में विभिन्न प्रसंगों में जहाँ पंच परमेष्ठिी पदों का विश्लेषण हुआ है, सिद्ध-पद की विविध दृष्टियों से व्याख्या की गई है। आगम आदि ग्रंथ जैन धर्म और दर्शन के मूल स्रोत हैं। जैन-परंपरा में अपने सिद्धांतों के अनुरूप साहित्य का बहुमुखी विकास हुआ। आगमों पर तथा अन्यान्य महत्त्वपूर्ण ग्रंथों पर विद्वानों ने व्याख्याएँ लिखीं, स्वतंत्र ग्रंथों की रचना की। साहित्य-सर्जन का यह क्रम निरंतर गतिशील रहा। प्राकृत और संस्कृत में विपुल साहित्य रचा गया। लोकभाषाओं में भी रचनाओं का वह क्रम विकासशील रहा। | जैन आगम तथा तदुत्तरवर्ती साहित्य प्रस्तुत शोध-ग्रंथ हेतु परिग्रहीत 'सिद्ध-पद' के विस्तृत विश्लेषण का मुख्य आधार है। सिद्ध-पद आधेय-स्वरूप है। आधेय को परिज्ञापित और व्याख्यात करने से पूर्व उसके आधार पर संक्षिप्त विवेचन, आधेय के स्पष्टीकरण और विशदीकरण में उपयोगी सिद्ध होगा, इसी दृष्टिकोण से प्रथम अध्याय में संक्षेप में आगमों पर, उनके व्याख्या साहित्य पर तथा तदितर साहित्य पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय अध्याय द्वितीय अध्याय में णमोक्कार मंत्र का, जिसके दूसरे पद में सिद्धों का स्थान है, विशेष रूप से | वर्णन किया गया है। साथ ही साथ सिद्ध-पद के संदर्भ में मंत्राराधना का अनेक दृष्टियों से विस्तृत विवेचन है। पाहा 475
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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