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________________ सिद्धत्व- पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य के अंतिम तीर्थंकर थे। इस समय जो जैन-धर्म प्रचलित है, वह भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट है। अर्थ रूप में जैसे पहले सूचित किया गया, यह वही धर्म है, जो भगवान् ऋषभ आदि पूर्ववर्ती तीर्थंकरों | ने प्रतिपादित किया किंतु देशना या द्वादशांगी रूप में यह भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट है ।' इतिहास के अनुसार भगवान् महावीर का जन्म ईस्वी पूर्व ५९९ में उत्तर बिहार के तत्कालीन | लिच्छवी गणतंत्र के अंतर्गत कुंड ग्राम में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हुआ। उनका नाम 'वर्धमान' रखा गया। भगवान् महावीर के पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था । श्वेतांबर मान्यता के अनुसार युवावस्था में माता-पिता के अनुरोध से वर्धमान ने विवाह कर | लिया था। उनकी पत्नी का नाम यशोदा था। उनकी पुत्री के प्रियदर्शना तथा अनवद्या- ये दो नाम प्राप्त होते हैं। - दिगंबर - मान्यता के अनुसार वर्धमान का विवाह नहीं हुआ था । भगवान् महावीर के माता-पिता | तेबीसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। भगवान् पार्श्वनाथ भगवान् महावीर से २५० वर्ष | पूर्व हुए थे।' तीस वर्ष की आयु में माता-पिता के देहावसान के बाद वर्धमान ने गृह त्याग कर आत्मसाधना के लिये महाभिनिष्क्रमण किया । भगवान् महावीर द्वारा तपश्चरण और साधना भगवान् महावीर ने अपने आपको दुर्दम तप, ध्यान और साधना के पथ पर सर्वतोभावेन संलग्न कर दिया था। आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के उपधान श्रुत नामक अध्ययन में भगवान् महावीर | की चर्या का बहुत ही मार्मिक विश्लेषण हुआ है। वे घोर तपस्या करने एकांत स्थान में जाते और अनेक प्रकार से ध्यान करते । उनका ध्यान अत्यंत उज्ज्वल और निर्मल कहा गया है। उनके ध्यान के संबंध में - 'एग पोग्गल - निविट्ठ- दिट्ठि - पद आया है, जिसका तात्पर्य यह है कि कभी-कभी वे एक पुद्गल पर अपनी दृष्टि एकाग्र कर ध्यान करते थे । अनार्य देश में अनार्य लोगों ने उन्हें स्थान-स्थान पर बड़ा कष्ट दिया। किंतु वे समभाव से सहते गये। १२ वर्ष, ६ मास, ५४ दिन के साधना काल के पश्चात् उन्होंने सर्वज्ञता प्राप्त की। संसार के समस्त स्थूल, सूक्ष्म, पदार्थों को वे हस्तामलकवत् देखने में सक्षम हुए। तुमुल आत्मसंग्राम में शौर्य और पराक्रम द्वारा, वीरता द्वारा सफल होने से वे महावीर कहलाये । जिस सत्य का १. जैन धर्म क्या कहता है ?, पृष्ठ : ६, ७. ३. जैन धर्म क्या कहता है ?, पृष्ठ : ७. 11 २. कल्पसूत्र, भाग-२, पृष्ठ १०७, १०८.
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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