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________________ सिद्धत्व- पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य मंगलमय णमोक्कार महामंत्र 1 विश्व के धर्मों में जैन धर्म का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है । जैन धर्म अहिंसा, अनेकान्त, अपरिग्रह और विश्वशान्ति के सर्वकल्याणकारी आदर्शो पर संप्रतिष्ठित है। प्रत्येक धर्म के अपने-अपने नमस्कार मंत्र | अथवा मंगलसूत्र होते हैं जो धार्मिक जन में चेतना, स्फूर्ति और ऊर्जा का संचार करते हैं। णमोक्कार | जैन धर्म का महामंत्र है । है तो यह नमस्कार रूप किन्तु इस महामंत्र में जैनदर्शन का तात्त्विक स्वरूप अत्यन्त सुन्दर ढंग से अनुस्यूत है। इस मंत्र में वंदनीय अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु- वे महनीय पाँच पद हैं जिनके साथ साधना के ऊर्ध्वमुखी सूत्र संपृक्त हैं सिद्ध पद, इस | महामंत्र में यद्यपि दूसरे स्थान पर प्रयुक्त है किन्तु वह आत्मा का परम विशुद्ध रूप है । प्रत्येक साधक का परम लक्ष्य सिद्धत्व अधिगत करना है। सिद्धत्व के विश्लेषण तक पहुँचने से पूर्व यह आवश्यक है कि यहाँ धर्म, संस्कृति, जैन- परम्परा, आगमादि साहित्य की सम्यक् चर्चा की जाय क्योंकि यह साहित्य ही वह माध्यम है, जिसके द्वारा सिद्धत्व के स्वरूप को स्वायत्त किया जा सकता है । साथ ही साथ सिद्धत्वरूप परम लक्ष्य की प्राप्ति के विभिन्न मार्ग भी जैन वाङ्मय में प्रतिपादित किये गये हैं, जिन्हें अवगत कर सिद्धत्वरूप परमसाध्य की दिशा में अग्रसर होने वाला साधक अपनी साधना में सम्बल प्राप्त कर सकता है अतः विश्व में संप्रवहणशील धार्मिक स्रोत, उनके उद्गम, विकास आदि की चर्चा करते हुए जैसा ऊपर उल्लेख हुआ है, जैन धर्म और साहित्य पर प्रकाश डालना नितान्त आवश्यक है, जिससे यह अनुसंधेय विषय भलीभाँति गृहीत किया जा सके। इसी दृष्टि से प्रस्तुत प्रकरण में जैन धर्म, दर्शन और साहित्य की तात्विक तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विस्तार पर प्रकाश डाला गया है । | जगत् का अनादि स्रोत यह संसार बड़ा व्यापक है। छोटे-बड़े, सूक्ष्म स्थूल, अज्ञ विज्ञ, सभ्य असभ्य न जाने कितने ही प्राणी इस संसार में व्याप्त हैं। प्राणी जगत् के विकास की चर्चा विद्वानों ने अनेक प्रकार से की है। | इसके विकास और उन्नयन की बात वे अपने-अपने ढंग से बतलाते हैं किन्तु अब तक इसका रहस्य कोई नहीं जान पाया। भारतीय दार्शनिकों ने इस विषय पर बड़ी गंभीरता से चिन्तन और मनन किया, जिनमें जैन | चिन्तकों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने इस जगत् को अनादि बतलाया क्योंकि अब तक उस 1
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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