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________________ आगमों में सिद्धपद का विस्तार इसके आगे के प्रश्नोत्तरों का सार इस प्रकार है-धर्मतत्त्व सुनने से उसको ज्ञानरूप फल प्राप्त होता कासको धर्म के सिद्धांतों का बोध होता है। ज्ञान की परिणति विज्ञान में होती है अर्थात् साधक जाने बा तत्त्वों को और अधिक सूक्ष्मता से जानता है। विशिष्ट ज्ञान ही विज्ञान है। जब उसे सिद्धांतों का जक परिबोध हो जाता है तो सहज ही उसका मन प्रत्याख्यान त्याग की दिशा में मुड़ता है क्योंकि वह देय- त्यागने योग्य, उपादेय- अपनाने योग्य तथा ज्ञेय- जानने योग्य पदार्थों का, तत्त्वों का भेद भलीभाँति समझ कर जो आत्मा के लिए अहितकारी या बंधनकारक हैं, उन्हें त्याग देता है। यदि विस्तार में जाएं तो कहना होगा- हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य, परिग्रह आदि का प्रत्याख्यान करता है। इसकी फल निष्पत्ति संयत-जीवन में होती है। संयम अपना लेने से वह अनासव-दशा पा लेता है। उसके कर्मों के आने के स्रोत रुक जाते हैं। वह संवत या संवर युक्त हो जाता है। वैसा हो जाने पर पूर्व संचित कर्मों के क्षय हेतु तपश्चरण या निर्जरा का पथ अपनाता है। उसका परिणाम- व्यवधान कर्मों के झड़ने या मिटने के रूप में उत्पन्न होता है। व्यवधान का फल अक्रिया है। अक्रियाओं का फल मानसिक, वाचिक या कायिक क्रियाओं का या प्रवत्तियों का सर्वथा आवत्त होना है। यह साधक के जीवन की उच्चतम दशा है। यही चौदहवाँ अयोगी| केवली गुणस्थान है। यहाँ समस्त योगों का अभाव हो जाता है, जिसके फलस्वरूप आत्मा को निर्वाण - निर्वति या शांति प्राप्त होती है। जिससे आगे की मंजिल सिद्धगति है। सत्रकार ने इस प्रसंग में साधना के सोपान पर आगे बढ़ते हुए साधक का जो चित्रण किया है, वह बड़ा रोचक है। प्रासाद की छत पर चढ़ने को समुद्यत व्यक्ति जैसे एक-एक सीढ़ी को लांधता हुआ ऊपर चढता है, तथा अंत में अपनी मंजिल को पा लेता है, उसी प्रकार संयमी साधक आत्मोत्थान के पथपर ज्ञान, विज्ञान, प्रत्याख्यान, कर्म-निरोध तथा तपश्चरण द्वारा आगे बढ़ता-बढ़ता सिद्धावस्था को अधिकृत कर लेता है, जो जीवन की सबसे बड़ी सफलता है।' सिद्धायतन-कूट : स्पष्टीकरण __ स्थानांग-सूत्र के कूट-सूत्र में जंबूद्वीप के अंतर्वर्ती पर्वतों के नौ-नौ कूटों का वर्णन आया है। उनमें पहले कूट का नाम सिद्धायतन-कूट है। ऐसा होने का कारण यह है कि भिन्न-भिन्न कालों में इन-इन कूटों पर से साधक आत्माएँ समस्त कर्मों का क्षय करके सिद्धत्व को प्राप्त हुई। यहीं से ये आत्माएँ सिद्धायतन या सिद्धशिला पर पहुँचीं। ऐसा होने के कारण इन कूटों का नाम सिद्धायतन कूट पड़ा। १. स्थानांग-सूत्र, स्थान-३, उद्देशक-३, सूत्र-४९८... 164 MARA Patil सकता arlahindi से S
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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