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समर्पण
जिनके जीवन का क्षण-क्षण वैराग्य की निर्मल, उज्ज्वल भाव तरंगों से संप्रक्षालित रहा,
जिनकी वाणी संयम, शील, त्याग एवं तप के अमृत्त कणों से आकलित तथा संसिक्त रहीं,
जिनके हृदय में विश्व - वत्सलता, समता, करुणा की त्रिवेणी सदा समुच्छलित, संप्रवाहित रही,
जो परम कल्याणकारी आध्यात्मिक आदर्शों को जन-जन - व्यापी बनाने हेतु सतत सत्पराक्रमशीला रहीं,
जिनके प्रथय, संरक्षण तथा शिक्षण से मुझे अपनी जीवन यात्रा में उत्तरोत्तर अग्रसर होते रहने में
असीम शक्ति और संबल प्राप्त होता रहा,
जिन्होंने अपने समग्र जीवन में न केवल हम अंतेवासिनियों को ही वरन् समस्त मानवता को धर्म- पाथेय के रूप में सदा दिया ही दिया, उन प्रातः स्मरणीया, शुद्धोपयोगानुभाविता गुरुवर्या विश्वसंतविरुदविभूषिता महासतीजी श्री उज्ज्वलकुमारीजी म. की सेवा में चारित्र-विवेक-पुण्य-भक्ति- समन्वित, आदर-श्रद्धा-विनयपूर्वक— भावत्कं वस्तु गुरुवर्ये ! सर्वश्रेयोविधायिके ! अर्प्यते भक्ति-भावेन, भवत्यै शिष्यया मुदा ।।
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चरणारविन्दरेणुरूपा, साध्वी धर्मशीला.