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टाल सकूँगा
जैसी करनी, वैसी भरनी, इसको तू टाल सकेगा क्या? करने भरने से कभी भी, भवों का अंत ला सकेगा क्या? अच्छी करनी से अच्छा संसार ला कर, सुखाभास ही है करनी में रहा, जन्म मरण का दःख, टाल सकेगा क्या ?
तू खुद ही खुदा, पूर्ण ज्ञानस्वरुप ही, तो फिर तुझे क्यों करने भरने की आदत ही है, अच्छी करनी ही पसंद है कितनी ही आदत तूने क्यों न बनाली, यह आदत ही है कभी भी तू किसी का भी कुछ भला/बुरा कर सका है क्या?
जैसी करनी, वैसी भरनी, इसको तू टाल सकेगा क्या ? करने भरने से कभी भी, भवों का अंत ला सकेगा क्या? पहले का किया आज भुगत, अच्छा कर कर कल भी अच्छा भोगना ही मनुष्य भव का मकसद है, क्या ?
ऐसा यदि तू कर भी ले फिर भी आकुल/व्याकुल रह संसार में ही तो फिरता रहेगा और तेरे खुद के निज स्वरूप से दूर कहीं सुखाभास/दुःख में भटकता रहेगा इस तरह तेरे शुद्ध आनंदमय को पा सकेगा क्या ?
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