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मैं चैतन्य ज्ञानानंद स्वरूप हूं मुझे शरीर, घर, समाज से शिकायत नहीं मेरे स्वयं के रागादि से भी शिकायत नहीं मैं आनंदमय था, हूं, और सदैव रहूंगा.
मैं चैतन्य ज्ञानानंद स्वरूप हूं मैं तो खुद ही खुद में रहनेवाला खुद में ही पूर्ण मुक्त, संसार से विभक्त खुद ही, खुद के खुदा में समानेवाला हूं.
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