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उपाय
शरीर में कहीं लग जाय तो वहां बहुत खून, अथवा रस इकट्ठा होने से सूजन आ जाती है और उस भाग में हलचल स्वयं ही बंद जैसी होती है, साथ साथ दुखता भी अवश्य ही है तब उपाय में उसको पूरा उलटा कर दुखाव को और सूजन को दबा कर गौण करके क्रिया करना ही तो है.
ऐसे ही मन बहुत ही चिंतित और हताश हो सिर दुखने लगा तो ध्यान को कुछ और ही जगह लगा कर हलका करना ही कुछ शांति देता है भले फिर से मन चिंता करना शुरू क्यों न कर दे, वो तो आदत से लाचार है फिर भी उपाय ढूंढने में लग कर ही मन को कुछ शांति होती है.
इसी प्रकार मेरा ज्ञान, ज्ञानस्वरुप को ही स्वयं ही स्वयं को ही जानने निकलता है तभी सारे इन्द्रिय ज्ञान दुःख का कारण ही लगते हैं कर्मोदय के भाव भी भले
अच्छे हों दुःख ही देते हैं अंतर में सत्ता में, जब तक एक रूप अखंड अचल ध्रुवमय नहीं आता अनुभव में, वेदन में आते शुभाशुभ भाव दुःख और बंध के ही कारण हैं.
मैं मेरे नित्य स्वरूपको जानकर, मुख्य कर, भेदज्ञान ही करता हूं, और सभी को करता हूं, यह उपाय गुरुओं ने समझाया है और स्वयं भी करके परम शांति आनंद को ही वेदते हैं मैं भी इसी उपाय से सफल होऊंगा और पूर्णता तक करता ही रहूंगा इस उपाय को जानकर मैं कृतकृत्य हो गया हूं, गुरुओं का दास भी हो गया हूं.
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