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मुझे हारा, पामर संसारी मान लेना ही मेरा मिथ्यात्व है मुझे जीता, परिपूर्ण मुक्त मान सकना ही सम्यकत्व है मैं सभी गतियों, क्षेत्र, भावों में एक ही पारिणामिक भाव हूं, इसी को मैंने जान, पहचान, श्रद्धान कर मुझको जीता ही मान लिया फिर हार में भी जीत है.
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