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चांद, सूरज, फूल, खुशबू, हुए हैं सभी पुराने नई एक कली खिली, मैं तो हूं उसीका दीवाना पर मैंने कभी भी इस ध्रुव परमात्मा को ही नई कल में, शुद्ध पर्याय में परिणमता ही न जाना न माना, तो फिर कैसे तो कर सकूं मैं वेदन
न दीवाना, प्रभु बन दीवाना, नई कली का ही दीवाना
चांद, सूरज, फूल, खुशबू, हुए हैं सभी पुराने नई एक कली खिली, मैं तो हूं उसी का दीवाना.
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