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साधक, साधन, साध्य
मैं ही हूं साधन, साधक और मेरा ही साध्य ऐसा अलौकिक, अदभुत, अनुपम है रूप मेरा मैं प्रभु नित्य ही हूं, मेरे ही अनित्य भाव हैं, प्रत्येक समय एकरूप ही प्रगट होता ही रहता हूं इस प्रकार ही मैं सदैव, अनंत समय तक रहता हूँ मैं नित्य एकरूप मेरे ही अनित्य में प्रगटता हूं
मैं ही हूं साधन, साधक और मेरा ही साध्य ऐसा अलौकिक, अदभुत, अनुपम है रूप मेरा मैं अनित्य, नित्य में ही एकाग्र होकर ही, स्वयं ही आनंद-शांतिमय सदैव रहता है मैं अनित्य में भी प्रत्येक समय नित्य को ही अनुभव ने में पूर्णतया सामर्थ्यवान हूं
मैं ही हूं साधन, साधक और मेरा ही साध्य ऐसा अलौकिक, अदभुत, अनुपम है रूप मेरा ऐसा अलौकिक है भाव मेरा, अस्तित्व मेरा, मैं मुझ में ही पूर्ण सिद्ध समान सदा पद मेरा मैं ही हूं नित्य और मैं ही हूं अनित्य भी, ऐसा परिपूर्ण चमत्कारी चैतन्य स्वरूप है मेरा मैं ही हूं साधन, साधक और मेरा ही साध्य ऐसा अलौकिक, अदभुत, अनुपम है रूप मेरा संसारी हूं तब तक तो मेरा अनित्य ही संसार सन्मुख होकर सुखाभास और दुखी ही हूं मुक्त हूं तब तो मेरे ही नित्य सिद्ध स्वरूप के सन्मुख होकर अबाध सुखी ही हूं. मैं ही हूं साधन, साधक और मेरा ही साध्य ऐसा अलौकिक, अदभुत, अनुपम है रूप मेरा साधक दशा भी तो मेरी ही मेरे में ही है संसार में परिभ्रमण का समय जैसे हुआ है अंत प्रभु दर्शन नित्य स्वरूप में ही लीन होता हूं और भूमिकानुसार रागादि का ज्ञाता बनता हूं. मैं ही हूं साधन, साधक और मेरा ही साध्य ऐसा अलौकिक, अदभुत, अनुपम है रूप मेरा इसी प्रकार संसारी, फिर साधक, और फिर पाता हूं मेरा ही नित्य पूर्ण स्वरूप मुझ में ही मैं ही हूं साधन, साधक और मेरा ही साध्य ऐसा अलौकिक, अदभुत, अनुपम है रूप मेरा.
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