________________
द्रव्य दृष्टि
यह जैन दर्शन की एक मुख्य से मुख्य देन है द्रव्य दृष्टि से ही समझ पाता, मैं इस संसार को और समझ पाता मैं ही मेरे पूर्ण स्वरूप को.
यह विश्व बना है छह द्रव्यों का ही, न एक कम हो न ही एक अधिक कभी भी हुआ, और न हो सकते तभी तो यह संसार जैसा है वैसा ही मैं जानता हूं.
सभी द्रव्य स्वयं में हैं पूर्ण, और पूर्णता में ही टिके बदलते दिखते हैं हर समय, इसी लिये होती है भ्रमणा मैं जैन हूं तो मुझे तो छह ही पूर्ण ही देते हैं दिखाई.
सभी द्रव्य खुद ही खुद में खुद की क्रिया करने में पूर्ण ही हैं, किसी को किसी की मदद की जरुर ही नहीं मैं इस बात को न समझू तो ही मुझे दिखते अनंत द्रव्य.
सभी जीव भी इसी प्रकार मुझे तो पूर्ण शुद्ध ही देते हैं दिखाई तो फिर कैसे करूं मैं किसीसे राग और किसी से द्वेष, सभी तो हैं मेरे जैसे ही जीव द्रव्य.
101