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तृषा
खाना खाने की जरूरत शरीर के लिये है लेकिन स्वाद के लिये अथवा इच्छा के लिये खाना तो विकार है हानिकारक ही है न!
इसी प्रकार जानने की जरूरत तो मैं कौन हूं ज्ञानस्वरुप हूं यह जानने के लिये ही है उसके आगे का जानना तो नुकसानकारी ही है न!
एक बार यथार्थ निर्णय किया फिर तो निशंक होकर ज्ञानस्वरूप को ही जानना मेरा धर्म है अब मैं किसको जानूं, क्यों जानूं, और कब जानूं.
जैसे भूख से ज्यादा खाना मेरे लिये वास्तव में हानिकारक ही है, उसी तरह निजस्वरूप को जानना ही मेरा हितकारक जानना है, ज्ञान है.
भौतिक पदार्थों का ज्ञान तो अज्ञान ही है आज के आधुनिक पुद्गल का ज्ञान तो अवश्य ही अज्ञान है, ज्ञान की तृषा ही है.