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तो इन कलाओं को देखते देखते इन शुभाशुभ भावों को ही निहारते कुछ गहराई में जा, ये भाव कहां उत्पन्न हो रहे हैं, वहीं शुद्ध भाव भी मौजूद ही हैं जीव शुद्ध को पकड़, इन शुभाशुभ के रंगों में न रंगा
इन सारी कलाओं की गहराई में मेरे ही शुभाशुभ भावों के पीछे ही, समीप ही, शुद्ध भाव भी हैं उनकी ओर भी द्रष्टि कर, जेवरों की कलाकारी नहीं परन्तु सोना देख, सिर्फ चमक नहीं सच्चा हीरा ही देख