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कर्मों का खेल
कर्मों का ये खेल है, इससे भाव होते हैं इसमे रचना पचना नहीं,इनसे तो तू दूर है कर्मों का ये खेल है
तू तो शुद्ध चैतन्यमय, आनंद से भरपूर है ज्ञान का तू पिंड है, और तू ही मेरा अपना है कर्मों का ये खेल है
कर्मों से ही शरीर है, इन्द्रियां और मन बुद्धि है इनके विचारों से अनोखा कहीं, तू भी मेरे संग है कर्मों का ये खेल है
कर्म तेरे साथ हैं, तू तो इनसे दूर ही है कर्म तो अजीव हैं, तू तो चैतन्य है कर्मों का ये खेल है
इस खेल को जानते हुए, खेल को पहचानते हुए मुझे तो तुझको जानना है, मुझे तो तुझको पहचानना है कर्मों का ये खेल है