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योगकल्पलता
कषाया विषयाः सर्वे क्षीयन्ते शीघ्रमेव हि।
नमस्कारे महातत्त्वे मुहुर्मुहुर्विचिन्तिते।।३०।। नमस्कार के परम तत्त्व का बार-बार चिन्तन करने से शीघ्र ही सभी विषय और कषाय क्षीण होते हैं।।३।।।।
त्यक्त्वा सर्वबहिर्भावान् सर्वथा शान्तचेतसा।
नमस्कारे रतो यो हि तस्य श्रेयो भवेद्धवम्।।३१।। जो सभी बाह्य वस्तुओं (सांसरिक वस्तुओं) को छोडकर शान्तचित्त से नमस्कार में लीन होता है उसका कल्याण निश्चित है।।३१।।
स्थापनीया प्रयत्नस्तु चेतोवृत्तिः पुनः पुनः।
नमस्कारे सुखार्थाय प्रातिकूल्यं विधेर्यदा।।३२।। भाग्य जब प्रतिकूल हो तो सुख के लिए नमस्कार महामन्त्र में बार-बार मन लगाना चाहिए।।३२।।
क्रूरकर्मा नरो याति सुगतिं वा परां गतिम्।
नमस्कारेऽन्तकोलेऽपि बुद्धिः स्थिरा भवेद्यदि।।३३।। क्रूर कर्म करनेवाले मनुष्य भी स्वर्ग या मोक्ष में जाते हैं, यदि मृत्यु के समय नमस्कार महामन्त्र में ध्यान केन्द्रित हो।।३३।।
श्रूयन्ते हा! तमोग्रस्ता जीवहिंसापरायणाः।
नमस्कारे श्रुते भावात्तिर्यश्चोऽपि दिवं गताः।।३४।। हा! अन्धकार (अज्ञान) से ग्रस्त होकर जीवहिंसा करनेवाले तिर्यश्च भी नमस्कार मन्त्र के सुनने से स्वर्ग गये।।३४।।
प्रपन्ने मोक्षमार्गे त्वं सत्वरं सिद्धिहेतवे।
नमस्कारे निजं चेतः सर्वदैव स्थिरीकुरु।।३५।। मोक्षमार्ग पर प्रवृत्त होने पर शीघ्र सिद्धि के लिए तू अपने मन को हर समय नमस्कार में स्थिर कर।।३५।।