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________________ योगकल्पलता एकस्मिन्नेव मन्त्रेऽस्मिन् सर्वकर्मविनाशिनी। नमस्कारे महाशक्तिर्गणाधीशैर्निरूपिता।।१८।। गणधरों ने नमस्कार को महाशक्तिमान् कहा है। उनके अनुसार एकमात्र इसी मन्त्र में सभी कर्मों का क्षय करने का सामर्थ्य है।।१८।। गौरवं याति लोकेऽस्मिन् सर्वत्र पूज्यते सदा। नमस्कारे भवेद्यस्य प्रत्ययः स्थिरचेतसः।।१९।। जिस स्थिर चित्तवाले पुरुष के मन में नमस्कार मन्त्र के प्रति आस्था है वे इस लोक में हर जगह पूजे जाते हैं तथा सम्मनित होते हैं।।१९।। रत्नत्रयात्मके मन्त्रे पुरुषार्थप्रसाधके। नमस्कारे भवेत्कस्य नोत्कण्ठा खलु धर्मिणः।।२०।। पुरुषार्थ के प्रसाधक रत्नत्रयरूप नमस्कार मंत्र के विषय में किस धर्मिपुरुष की उत्कण्ठा नही होती?।।२०।। जिज्ञासा जायते नूनं मन्त्रेऽस्मिन्नधिकारिणाम्। नमस्कारेऽतिसङ्क्षिप्ते ध्यानतन्त्रे जिनोदिते।।२१।। आगम के ध्यानतन्त्र में नमस्कार मन्त्र अत्यन्त संक्षिप्त से कहा गया है, अतः इस मन्त्र के विषय में अधिकारियों को अवश्य जिज्ञासा होती है।।२१।। मन्त्रे संसारसारे तु जन्मनिर्वाणकारणे। नमस्कारेऽभिलाषाद्धि सर्वपापक्षयो भवेत्।।२२।। जन्म-निर्वाण के कारण संसार में सारभूत नमस्कार मन्त्र की अभिलाषामात्र से सभी पापों का क्षय होता है।।२२।। कल्याणं सर्वजीवानां सदा कुर्वन्ति सन्ततम्। नमस्कारे स्थिताः सर्वे भावतः परमेष्ठिनः।।२३।। भाव से नमस्कार में स्थित पञ्चपरमेष्ठि सभी जीवों का सदैव कल्याण करते हैं।।२३।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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