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________________ योगकल्पलता अर्थात् कुछ असाध्य नहीं।।५।। सर्वदा सानुरागं हि स्वर्गमोक्षविधायके। नमस्कारे स्थिरं चित्तं गुरुभक्त्या प्रजायते।।६।। गुरु की भक्ति से ही स्वर्ग और मोक्ष देनेवाले नमस्कार मन्त्र में सदा चित्तअनुराग सहित स्थिर रहता है।।६।। विद्यते नावकाशोऽपि तमसस्तु कदाचन। नमस्कारे महासूर्ये हृदि नित्यं प्रकाशिते।।७।। हृदय में नमस्काररूप सूर्य के नित्य प्रकाशित होने से अन्धकार को प्रवेश करने का मौका ही नहीं मिलता है।।७।। सद्गुरोः कृपया यस्य भवेद्रुचिः सुनिश्चला। नमस्कारे महामन्त्रे तस्य सिद्धिः स्वयंवरा।।८।। नमस्कार महामन्त्र पर जिसका अटूट प्रेम होता है उसे सद्गुरु की कृपा से वरण करने को सिद्धि स्वयं आती है।।८।। जायते वन्दनीयानां सर्वेषां वन्दनं क्रमात्। नमस्कारे स्मृते भक्त्या भावसङ्कोचसंयुतैः।।९।। भाव संकोच से युक्त होकर भक्तिपूर्वक नमस्कार महामन्त्र का स्मरण करने से क्रम से सभी वन्दनियों को वन्दन होता है।।९।। ज्ञाते सम्यग्गुणाधिक्ये तत्त्वतः परमेष्ठिनाम्। नमस्कारे विना यत्नं विदुषां लीयते मनः।।१०।। नमस्काररूप परमेष्ठियों के गुणों की प्रचुरता तात्त्विक रूप से ज्ञात होने पर नमस्कार मंत्र में विना यत्न ही विद्वानों का मन लीन हो जाता है।।१०।। रहस्यं सर्वशास्त्राणां सर्वयोगसमन्वितम्। नमस्कारे जिनैः प्रोक्तं समासेन प्रतिष्ठितम्।।११।। सभी जिनेश्वरों ने कहा है कि नमस्कार महामन्त्र में सभी योगों से भरा हुआ सभी शास्त्रों का रहस्य संक्षेप में (=संक्षिप्त होकर) प्रतिष्ठित है।।११।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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