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________________ नमस्कारकीर्तनम् निरन्तर चिदानन्द में लीन मुमुक्षु साधक नमस्कार महामन्त्र के प्रभाव से हमेशा हर्ष - शोक आदि से परे हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं । । ३५ ।। अहं ब्रह्मेति वाक्यस्य गूढार्थो ज्ञायते यदा । स्यात्प्रमादस्तदा नैव नमस्कारान्न संशयः ॥ ३६ ॥ नमस्कार महामन्त्र से जब अहं ब्रह्म इस वाक्य के गूढ अर्थ का ज्ञान होता है तब साधक को आलस्य नहीं होता इसमें कोई संदेह नहीं । । ३६ ।। प्रतीतिमात्ररम्येषु भोगेषु सुलभेष्वपि । आसक्तिर्जायते नैव नमस्कारान्न संशयः ।। ३७।। ४३ नमस्कार मन्त्र से साधक को क्षणिक, सुलभ भोग में भी आसक्ति नहीं होती इसमें कोई संदेह नहीं ।। ३७ ।। सर्वारम्भपरित्यागान्निवृत्तिर्बाह्यभावतः । आत्माभिमुखवृत्तिः स्यान्नमस्कारान्न संशयः ।। ३८ ।। नमस्कार मन्त्र से सभी आरम्भों के त्याग से बाह्य क्रिया से निवृत्त होकर मन आत्मा की ओर अभिमुख होता है इसमें कोई संदेह नहीं ।। ३८ ।। सर्वसङ्गपरित्यागाद्योगसिध्दिर्मता हि या। असङ्गयोगसिद्धिः सा नमस्कारान्न संशयः । । ३९।। सर्वसंग को छोडने से जो योग की सिद्धि (योगियों के) अभिमत है, वह असंगयोग की सिद्धि नमस्कार मन्त्र की साधना से होती है इसमें कोई संदेह नहीं । । ३९ ।। औदासीन्ये भवेत्स्पष्टं विकल्पशमनात्पुनः। निर्विकल्पकचैतन्यं नमस्कारान्न संशयः ॥ ४०॥ (बाह्य भावों में ) उदासीनता जागने पर स्पष्टरूप से (मानसिक) विकल्प शांत होते हैं उस से चैतन्य ( आत्मा ) निर्विकल्प होता है। यह नमस्कार महामंत्र से होता है इसमें कोई संदेह नहीं । ॥ ४० ॥
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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