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नमस्कारकीर्तनम्
नमस्कार मन्त्र से तत्त्व स्वयं (ज्ञान) प्रकाशित होता है इसके प्रकाशित होने पर पुण्य-पापरूप सभी कर्मों का क्षणभर में नाश होता है इसमें कोई संदेह नहीं ||२३||
कोशपञ्चकविज्ञानाद्बह्मज्ञानविभावसुः ।
उदेति हृदये साक्षान्नमस्कारान्न संशयः ।। २४॥
पाँच कोश के ज्ञान से हृदय में ब्रह्मज्ञानरूप सूर्य उदित होता है यह साक्षात् नमस्कार महामन्त्र से ही होता है इसमें कोई संदेह नहीं।।२४।।
गुरोः कृपां समासाद्य प्रयात्येवाचिरान्नरः। संसारबन्धनान्मुक्तिं नमस्कारान्न संशयः ।। २५ ।।
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गुरु की कृपा को प्राप्त करके शीघ्र ही संसाररूप बन्धन को पार कर मुक्ति की ओर प्रयाण करता ही है यह नमस्कार महामन्त्र से होता है इसमें कोई संदेह
नहीं।।२५।।
उत्पद्यते जिनेशे या भक्तिस्तु प्रेमलक्षणा ।
त्रायते सैव दुःखेभ्यो नमस्कारान्न संशयः ।। २६।।
नमस्कार महामन्त्र से जिनेश्वर भगवान् के ऊपर प्रेम लक्षणा भक्ति उत्पन्न होती है, यही भक्ति संसार के दुःखों से रक्षण करती है इसमें कोई संदेह नहीं।।२६।।
आत्मैव विद्यते ब्रह्म तात्पर्यमिदमद्भुतम्।
ज्ञायते स्फुटरूपेण नमस्कारान्न संशयः ।। २७ ।।
आत्मा ही ब्रह्मरूप है यह तथ्य नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से ही स्पष्टरूप से अवगत होता है इसमें कोई संदेह नहीं ।। २७ ।।
धीस्वास्थ्यं परमं प्रोक्तं भावनाज्ञानमुत्तमम् ।
साक्षात्कारो दृढाभ्यस्तान्नमस्कारान्न संशयः ।। २८ ।।
बुद्धि का चरम सोपान भावनाज्ञान कहा गया है उसका साक्षात्कार नमस्कार
मन्त्र के दृढ अभ्यास से ही होता है इसमें कोई संदेह नहीं ।। २८ ।।
भावनाज्ञानतो यावच्चित्तैकाग्र्यं प्रजायते ।
ब्रह्माभ्यासः ततः सम्यग् नमस्कारान्न संशयः ।। २९ ।।