________________
नमस्कारनिरूपणम्
२२
नमस्कारेण मन्त्रेण सेव्यते परमात्मनः।
सगुणं निर्गुणं रूपं धर्मकामार्थमोक्षदम्।।२४।। नमस्कार मंत्र से परमात्मा के सगुण या निर्गुण रूप की सेवा होती है, जो धर्म-काम अर्थ-और मोक्ष देता है।।२४।।
नमस्कारेण मन्त्रेण सगुणोपासनं तथा।
ब्रह्मतत्त्वस्य विज्ञानान्निर्गुणोपासनं क्रमात्।।२५।। नमस्कारमन्त्र से सगुण की उपासना होती है तथा ब्रह्मतत्त्व के ज्ञान के बाद क्रम से निर्गुण की उपासना होती है।।२५।।
नमस्कारेण मन्त्रेण प्रातिहार्यादिमण्डितम्।
सगुणं भगवद्पं ध्यायते खलु रागिभिः।।२६।। रागीयों के द्वारा नमस्कारमन्त्र से प्रातिहार्य से युक्त भगवान् के सगुणरूप का ध्यान किया जाता है। (अर्थात् नमस्कारमन्त्र के प्रभाव से रागियों को भी भगवद्दर्शन होता है।)।।२६।।
नमस्कारेण मन्त्रेण कृत्वा यस्तत्त्वनिश्चयम्।
करोति निर्गुणं ध्यानं स हि ज्ञानेन सिद्ध्यति।।२७।। नमस्कारमन्त्र से तत्त्व का निश्चय करके जो निर्गुण ध्यान करता है वही ज्ञान से सिद्ध होता है।।२७।।
नमस्कारेण मन्त्रेण निर्गुणं ब्रह्म योगिभिः।
ध्यायते तद्गुणानां हि कृत्वाऽध्यारोपणं हृदि।।२८।। योगी लोग निर्गुण ब्रह्म के गुणों को हृदय में आरोपित करके नमस्कारमन्त्र से उसका ध्यान करते हैं।।२८।।
नमस्कारेण मन्त्रेण भावश्रद्धासमन्विताः।
मुक्तिशर्मप्रदं यान्ति परमं प्रशमामृतम्।।२९।। नमस्कारमन्त्र से भाव और श्रद्धा युक्त साधक मुक्ति तथा सुख को देनेवाले प्रशम अमृत को प्राप्त करते हैं।।२९।।