________________
नमस्कारनिरूपणम्
नमस्कारेण मन्त्रेण कामक्रोधादिनाशतः ।
प्रक्षयः सर्वपापानां शाश्वतः कथितो बुधैः । । १२ ।।
पंडितों का कहना है कि नमस्कारमन्त्र के प्रभाव से एवं काम-क्रोध आदि के नाश होने से सभी पापों का शाश्वत क्षय हो जाता है ।।१२।।
नमस्कारेण मन्त्रेण दुर्ध्यानं नश्यति क्षणात्।
ततोऽभ्याससमायोगात्साम्यं सर्वत्र सर्वदा ।। १३ ।।
२१
नमस्कारमन्त्र से दुर्ध्यान एक क्षण में नष्ट हो जाता है उसी कारण अभ्यास के योग से हर जगह समता भाव रहता है ।। १३ ।।
नमस्कारेण मन्त्रेण शुद्धध्यानप्रभावतः। संवरो भावतश्चैव निर्जरा जायते ध्रुवम् ॥ १४॥
नमस्कारमन्त्र के प्रभाव से शुद्ध ध्यान होता है तथा उससे संवर भाव होकर निश्चित ही कर्म की निर्जरा होती है ।। १४ ।
नमस्कारेण मन्त्रेण शुक्लध्याने प्रजायते ।
सर्वेषां भवबीजानां रागादीनां विनाशनम् ।। १५ ।।
नमस्कारमन्त्र से दो प्रकार के शुक्ल ध्यान होते हैं? जिससे भव के सभी रागादि बीज का नाश होता है ।। १५ ।।
नमस्कारेण मन्त्रेण तस्याचिन्त्यप्रभावतः।
स्वर्गापवर्गसिद्धिस्तु भव्यानां शीघ्रमेव हि ।। १६ ।।
नमस्कारमन्त्र से उसके अचिन्त्य प्रभाव के कारण भव्यों को शीघ्र ही स्वर्ग और अपवर्ग की सिद्धि होती है ।। १६ ।।
नमस्कारेण मन्त्रेण रत्नत्रयीप्रतापतः ।
यो जिनः सोऽहमेवेति स्वानुभूतिः प्रजायते । । १७ ।।
नमस्कारमन्त्र से तथा रत्नत्रयी ( सम्यक् दर्शन - ज्ञान - चारित्र) के प्रताप से जो जिन है वही मैं हूँ' ऐसी आत्मप्रतीति होती है।।१७।।
१ एकत्वपृथक्सविचार, एकत्ववितर्कनिर्विचार ।